26 January, 2019

• राग सरकारी


     दलबदलू थाट का यह एक मध्ययुगीन राग है। इसका विस्तार सामर्थ्य, सत्ता तथा धनलाभ को केंद्र में रखकर किया जाता है। साधारणतः वक्र दिखनेवाला यह प्रायः गायक प्रधान राग है। इस राग में श्रोताओं की भावनाएँ तथा हित वर्ज्य हैं। स्थल, काल, स्थिति तथा हेतु के अनुसार इसके आरोह व अवरोह के स्वरों को निश्चित किया जाता है। इसके गायक सदैव प्रयोगशील रहते हैं। प्राप्त स्थितिनुसार इसका गानसमय निर्धारित होता है। मंच पर विराजमान होते हुए, कंठ से स्वर निकाले बिना गायन के केवल अभिनय की अनुमति भी यह राग देता है।
     इस राग के वादी स्वर ‘सा’ (संभ्रम), ‘ग’ (गड़बड़ी), व ‘नि’ (निद्रिस्त), तथा संवादी स्वर ‘म’ (मिथ्या), ‘ध’ (धाँधली), और ‘रे’ (रफ़ा-दफ़ा) हैं। इसकी प्रत्येक बंदिश का मुख्य हेतु मिथ्या वचनों से श्रोताओं को पथभ्रष्ट कर उनमें आपसी कलह उत्पन्न करना माना गया है। श्रोताओं की हर संभव दृष्टि से कर्कश इस राग का अनुवादी स्वर ‘प’ (पलायन) है, जो गायक को विपरीत स्थितियों में पलायन में सहायक होता है।
     चुनाव से पूर्व इस राग को दृत लय और तार सप्तक में गाया जाता है। परिणाम घोषित होते-होते लय और सप्तक दोनों मध्य हो जाते हैं। पराजित गायकों के लिए इसकी पकड़ मंद्र सप्तक में विलंबित लय में गाना अनिवार्य है, अन्यथा गायकी त्यागना अपरिहार्य हो जाता है।

     ‘अवसरवादी’ घराने के सुप्रसिद्ध गायक ‘घोटालानवाज़ टोपीवाले’ रचित कुछ रचनाएँ:

पराजित ख्याल

गुनि जन की मत सुनियो सज्जन, लूट जात वह तुम्हरी रसोई,
तुमको दियत है विष का प्याला, आप वह खावे मेवा-मिठाई,
तुम दीजो बस एक बरस, मैं बन जाऊँ तुम्हरा हलवाई,
हाथ मैं जोडूँ, पाँव पडूँ मैं, तुम पर्बत, मैं तुच्छ हूँ राई।
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चुनावी ख्याल

गुनि जन कहते सुनो भई सज्जन, काहे रूठे हो तुम हम से,
भर देंगे हम तुम्हरी झोली, नोट करारे और बोतल से,
लदा हुआ है हमरा परचा, विकास के मीठे वचनों से,
किरपा कीजे बटन दबाकर, पावें मुक्ति सबहूँ दुख से।
▫▫▫▫▫

विजयी ख्याल

गुनि जन कहते कौन हो सज्जन, तुम्हरा दुखड़ा जानो तुम ही,
सुख तो तुम्हरे आँगन आवे, हमरी झोली भर दो तब ही,
परचा नहाया तुम्हरे आँसू, बह गई सकल विकास की स्याही,
सिमरन करते रहना हमरा, अधिक नहीं, बस पाँच बरस ही।

     गत कुछ दशकों में इस राग के अति-विस्तार से अन्य मधुर राग नामशेष हो चुके हैं; किंतु इतिहास में ऐसे अवसरों का उल्लेख है, जब विवश हो कर व्याकुल श्रोताओं ने ही समस्त नामशेष रागों को पुनर्जीवित किया।

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15 January, 2019

• मकर-संक्रांति


फ़स्ल की सरगोशी सुनाती, तराना काश्तकारी का,
गुनगुन पंछियों की देती, क़ियास मौसम-ए-बहार का,
आब-ए-रूद खिलखिला कहता, नग़्मा सुकून-ए-आबाद का,
शीरीनी पा गुड़ सी, तिल-तिल बढ़े अमन का.

(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)

(१-whispering, २-farming, ३-speculation, ४-river water, ५-satisfying prosperity, ६-sweetness, ७-peace)
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