26 January, 2020

• गणतंत्र

हो पदच्युत कलंकित, हटे मुखौटा छद्मी नेतृत्व का,
सिंहासनों के द्वंद्व में किंतु, पतन न हो गरिमा का,
अब न हो दमन शोषण, सत्य शांति क्षमा का,
बीते मधुर में खो, विस्मरण न हो कटु वास्तव का।

व्यर्थ न हो बलिदान, हो सम्मान हर समिधा का,
देश का हर श्वास हो अब, उदाहरण निःस्वार्थ का,
भेद अब न हो धर्मों में, होता पूजन कर्मों का,
स्वतंत्र, निडर, स्वच्छंद हो अब, कण-कण गणतंत्र का।
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