उम्मीद कि अब न बहलेगा
अवाम, चंद खारी बूँद-ए-ख़ास१ से,
जो कतराती हैं
शहीद के अपनों के तसव्वुर२ में भी आने से,
उन बूँदों का भी
हो ज़िक्र, महफ़ूज़ आम-ए-वतन३ हर जिनसे,
तवाज़ो४
हो लहू-ए-जिगर की भी, रंगा ज़मीं का ज़र्रा-ज़र्रा जिससे.
महज़ आँकड़ों से
बहलाया जाता चमन५ को, वहाँ बेहोश बाज़ार सारे,
सदियाँ बीत गईं
कम्बख़्त६ सुनते, झूठे वादों के नग़्मात सारे,
जाने कब हो
आरज़ू-ए-इन्साफ़७ पूरी, ख़त्म हों इंतिज़ार वह सारे,
डाल-डाल बसेरा
सोने की चिड़िया का, हों अरमान-ए-अवाम८ पूरे.
(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)
(१-tears of distinguished, २-imagination, ३-common citizen, ४-respect, ५-garden, ६-unfortunate, ७-desire of justice, ८-earnest hopes of citizens)
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# Republic, Revolution, Independence, Freedom
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