22 March, 2020

• बूँद

     बचपन में बारिश और भीगना अतिप्रिय था। हेतुतः घर में रेनकोट भूलना, और पाठशाला से लौटते समय भीगना किसी युद्ध जीतने का आनंद देता। आई-बाबा की डाँट के डर पर भी यह लालच भारी ही पड़ता। युवावस्था आते-आते अन्य चीज़ों के साथ-साथ बारिश और भीगने की परिभाषा में भी बदलाव आया। जिनमें भीगने से कभी प्रफुल्लित होता था, उन्हीं से भीगने में अब उत्कटता महसूस होने लगी। कभी जिन्हें हथेली पर ले उठते तुषारों सा खिलखिलाता था, उन्हीं को अब हथेली से उछाल किसी की स्मृति का गीत गाता था।
     ‘सृष्टि’ की तरह ‘बूँद’ और प्रकृति से जुड़ी मेरी अन्य रचनाएँ भी मुझे अपूर्ण लगती हैं। परिस्थिति के अनुसार बूँदों की प्रस्तुति चाहे भिन्न हो, किंतु अभिव्यक्ति हमेशा मनोरम ही रहती है। कामना यही है, कि सृष्टि के प्रेम की बूँदें यूँ ही अविरत बरसती रहें।

लाल हरे और नीले पीले, रंग जीवन में सुंदर सारे,
इंद्रधनुष की धुन में ठुमकते, जीने के सुर प्यारे-प्यारे,
निर्मल जल बन जाते पल में, एक बूँद में जब हों सारे,
एक बूँद में ही मैं भिगोऊँ, विभोर करती सारी फुहारें।

■ World Water Day
(Select lines from my Hindi poetry book)
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09 March, 2020

• फागुन

भस्म हों रिपु समस्त, मानस मुक्त हो भय से,
होलिकानल पावन हो, आहुति हर श्रेष्ठ से,
धधके हर स्पंदन अब, तिमिर नष्ट हो हृदय से,
प्रकाशमान होती हर दिशा, फागुन की ज्वाला से।

रंग चढ़ें, घुलें भी, सजे हर कण सृष्टि का,
मिले स्नेह, बढ़े भी, अंत हो कलह, द्वेष का,
कोकिल सी वाणी मधुर, बने साज़ हर श्वास का,
हृदय हर परिधान करे, गुलाल उत्कट पलाश का।

फागुन पूर्णिमा और धुलेंडी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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08 March, 2020

• परवाज़-ए-निस्वाँ

करो तर्क मायूसी ज़िहन की, रहो न अब तुम नातवाँ,
महज़ उफ़क़ न हो मंज़िल, लाँघो हुदूद-ए-कहकशाँ,
पाओ मराहिल यूँ मुन्फ़रिद, कि बने हर वतन रश्क-ए-जिनाँ,
लिखे इस्तिलाह-ए-फ़राज़ अब, हर परवाज़-ए-निस्वाँ.

■ International Women’s Day

(१-weak, २-horizon, ३-bounds of galaxy, ४-goals, ५-unique, ६-envied even by heaven, ७-definition of height, ८-flight of women)
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