27 December, 2019

• मिर्जा गालिब

काळ बरेच लोक गाजवतात, पण त्यातील मोजकेच हृदयावर नाव गोंदतात. मिर्जा गालिब असेच एक विलक्षण व्यक्तिमत्त्व. आपल्या अलौकिक लेखणीच्या किमयेने रसिकांच्या हृदयांवर चिरकाल अधिराज्य गाजविणारा अनभिषिक्त सम्राट.

     ऊरी अपत्यवियोगाचे दुःख बाळगून आणि मुगल विरुद्ध इंग्रज संघर्षयुगीन उलथापालथ पाहून वयाच्या अवघ्या अकराव्या वर्षापासून काव्यरचना करणार्‍या मिर्जांचे कविमन हेलावले नसते तरच नवल होते. मिर्जांना त्या काळी बटबटीत शृंगारावरच भर असलेली शायरी मुळीच आणि कधीही रुचली नाही. मार्मिक विनोद साधून ते त्या शायरीच्या उथळपणावर उघडउघड टीका देखील करीत असत. त्यांनी देखील शृंगारावर आधारित रचना लिहिल्या, पण त्यात थिल्लरपणाला सक्त मज्जाव होता. त्यांच्या अशा रचना म्हणजे अभिजात व निर्व्याज प्रेमाची हळुवार आणि दर्जेदार अभिव्यक्ती होती. प्रेमाचे गूढ पण अतिरम्य वर्णन त्यांच्या शायरीत आढळते. तत्त्वज्ञान आणि जीवनविषयक मूल्य यांना मिर्जांनी त्यांच्या लेखनात स्थान देऊन उर्दू शायरीला एक निराळे आणि मानाचे स्वरूप दिले. आयुष्यात बेतलेले आणि बघितलेले दुःख त्यांच्या शायरीत अनेकदा डोकावते. प्रथमदर्शनी समजण्यास अवघड वाटणारे गालिबचे लिखाण बारकाईने वाचले असता उमजू लागते आणि अक्षरशः वेड लावते. शूर मर्दाचा पोवाडा खुद्द शूराच्याच स्वरात ऐकल्यानंतर इतर शौर्यगीते जशी रुचत नाहीत, तसेच एकदा गालिब वाचले की इतर रचना औषधास देखील कुणी बाळगत नाही. पत्रलेखनातदेखील मिर्जांचीच मक्तेदारी होती. असे म्हणतात, की त्यांची पत्रे वाचणार्‍यांना प्रत्यक्ष गालिब बोलल्याचा भास होत असे. गालिबच्या चीजा घोळवून रसिकांपर्यंत पोहचविण्याचा अट्टाहास कित्येक लोकांनी केला; पण ते शिवधनुष्य तोलणे केवळ बेगम अख्तर सारख्या दिग्गजांनाच साध्य झाले. हीर्‍याला सोन्याचेच कोंदण हवे.

     उर्दूला एक सन्मानजनक आणि आगळेवेगळे रूप बहाल करून साहित्य जगतात मानाचे स्थान मिळवून देण्यात मोलाचा वाटा असलेल्या मिर्जांना आदरांजली वाहण्यास लेख जरी मराठीत लिहिला, तरी पूर्णविराम उर्दूने देण्याचा मोह अनावर होतोय.

तमन्ना-ए-ज़र न छुई आपको, न ख़्वाहिश अल्क़ाब-ओ-ताज की,

आलम ने किया एहतिराम-ए-ज़बाँ, वुस्अत-ए-हुनर थी आपकी,
बेक़रार पाते हैं सुकून ज़ीनत-ए-लफ़्ज़ से, आसूदा हर साँस बेचैन की,
बेनज़ीर मअना-ए-अलफ़ाज़ बढ़ाते, रौनक़ हर शाम-ए-अंजुमन की.

■ मिर्जा गालिब यांचा वाढदिवस

(१-desire of wealth, २-titles & crown, ३-honour of language, ४-extent of talent, ५-satisfied, ६-meaning of words, ७-an evening assembly)
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26 December, 2019

• बाबा आमटे

हर ठुकराई हुई रूह को, सँवारा पनाह-ओ-इल्म से,
बियाबाँ भी खिल उठा, ‘आनंदवन’ के गुलों से,
न ख़िताब-ओ-ताज का ग़ुरूर, न बहले आप शुहरत से,
क़ाइम है वुजूद-ए-इन्सानियत, आप की सी इमदाद से.

आज़ादी-ए-वतन की ख़ातिर चले, राह-ए-अदम-ए-तशद्दुद पर,
इम्तियाज़ को दी शिकस्त, इन्सानियत को अपनाकर,
मुहब्बत और तवाज़ो कमाई, बेशुमार दौलत ठुकराकर,
निशाँ बनाए सरमद१०, ‘दाग़’-ए-नफ़्रत११ मिटाकर.

■ Baba Amte’s birthday

(१-knowledge & shelter, २-jungle, ३-title & crown, ४-established, ५-existence of humanity, ६-assistance, ७-path of non-violence, ८-discrimination, ९-respect, १०-immortal, ११-patch (of leprosy) of hatred)
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24 December, 2019

• कशमकश

मुसल्सल मुक़ाबला दिल-ओ-ज़िहन के दरमियान,
सिलसिला-ए-ज़ीस्त बना है आग़ाज़-ए-फ़साना से,
दिल की ख़ातिर धड़कने का सबब है दर्द की दास्तान,
कशमकश करे ज़िहन, मिटाने हर्फ़-ए-दर्द हिकायत से.

(१-consistent, २-order of life, ४-struggle, ५-an alphabet of pain, ३&६-story)
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22 December, 2019

• तश्वीश

एहसान तअस़्स़ुर-ए-तसव्वुर का, जिसने सँभाली तनहाई मुद्दत से,
हमनफ़स जो बना रहा दाइमन्, पल-ए-आग़ाज़-ए-फ़साना से,
तश्वीश, कि क्या हो अंजाम, जो मुजस्सम हो चंद लमहात गुज़रे से,
हौसला ग़ालिब न रहा माज़ी सा, कैसे पाएँगे नजात सैलाब से.

(-influence of imagination, -consistent, -apprehension, -actual, -strong)
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21 December, 2019

• यल्गार

होईल का शंखनाद गगनभेदी, खेचण्या तख्त कलंकित,
भडकेल का दावानल, घेरून अहंकारी अनुचित,
अन्याय व अधमांशी झुंजण्या, रयत होईल का प्रेरित,
तळपता क्रांतिसूर्य करेल का, सुप्त चेतना प्रज्वलित।
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19 December, 2019

• बँटवारा

ख़फ़गी सरहदों से क्यों बेवजह, उनसे तो होती है महज़ नक़्शे में तरमीम,
ख़ता तल्ख़ ख़यालात का, मुतअस़्स़िर जिससे मुद्दत से मुहब्बत समीम,
लकीरों से बनाए निशाँ ज़मीं पर मगर, कैसे बाँटोगे आब-ओ-हवा की शमीम,
छेड़ी दिल-ओ-ज़िहन के बँटवारे ने, जाने कब तक चलेगी यह जंग-ए-तक़्सीम.

(१-displeasure, २-amendment, ३-bitter, ४-affected, ५-unadulterated, ६-fragrance, ७-battle of division)
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16 December, 2019

• गुंता

जन्मास येई प्रत्येक जीव, देऊन गर्भातल्या गुंत्यास लढा,
श्वास पणास लावितो जीव, सोडविण्या प्राक्तनातला तिढा,
निराश करी आपुलेच प्रतिबिंब किंतु, देई धैर्य ही पार करण्या ओढा,
ओघळ आयुष्याचे शोधिती वाटा, भेदून असंख्य स्मृतींचा वेढा।
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03 December, 2019

• अंजाम

ख़ता हुआ है अरसे से, ख़ामोश रहकर ज़ुल्म सहते ही रहने का,
जुर्म भी हुआ, बेज़बाँ रहकर सितम के ख़िलाफ़ जंग न छेड़ने का,
आँखों पर बँधी पट्टी बेबस, यक़ीन न रहा एअतिदाल-ए-तराज़ू का,
मजबूर अवाम गवाह-ओ-शिकार मुद्दत से, क़हर-ओ-रवैया-ए-क़ातिल का.
(१-oppression, २-equilibrium of weighing scale, ३-cruelty & attitude of assassin)
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24 November, 2019

‘नया पुराना’

बढ़ती उम्र के साथ जन्मदिन का आकर्षण घटता जाता है। बचपन का जन्मदिन नए कपड़े, आरती उतारना, मिठाई और तोहफ़ा इन सब में उलझा रहता है। जैसी-जैसी उम्र बढ़ती गई, हर जन्मदिन पर वह विचारों में उलझता चला गया। अतीत की तमाम घटनाएँ डाक्युमेंटरी की तरह उसे मनःपटल पर दिखती जातीं। उस दिन उसने चालीस पार कर दिए थे। दिनभर फ़ेसबुक, एस.एम.एस., ई-मेल, फ़ोन इत्यादि माध्यमों से उसे शुभेच्छाएँ प्राप्त होती रहीं। उससे अधिक उसके बेटे उत्साही थे। इतने, कि केक भी उन्होंने उनकी पसंद का लाने को कहा था। रात्रि के भोजन के बाद ब्रश करते वक़्त उसने आईने में झाँका, तो आईना बोल पड़ा; और वह फिर एक बार अतीत में खो गया।
     क्या समय के साथ लगभग सारी चीज़ें बदल जाती हैं? शायद हाँ, और नहीं भी।

अधेड़ उम्र का पूरा जन्मदिन, जाने कितना कह कर गया,
संदेशों को पा मित्रों से, गीत पुराने छेड़ फिर गया,
केश पके कह गए अनमने, क्या कुछ कितना बदल है गया,
मैंने पूछा पुनः दर्पण से, यह सब ऐसे कैसे हो गया?
दर्पण बोला वर्षों पूर्व, इसी तरह तुम यहीं खड़े थे,
रूप तुम्हारे बदले देख, यों ही मुखपर प्रश्नचिह्न थे,
पात्र नए हैं, वेष हैं बदले, प्रस्तुति के अंदाज़ अलग थे,
कथानक आज भी लुभावन ही हैं, जितने मनोरम कल वे थे।

(Select lines from my Hindi poetry book)
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14 November, 2019

• शैशव

मात्र एक दिवस की कामना, करते अंतरंग मेरे,
उस भूत की, जिससे वर्तमान उभरे हैं मेरे,
करने अनावरण क्षण, जिनमें लीन थे हर पहलू मेरे,
अस्वस्थ होता हूँ मैं, कि लौटा दो मुझे वह पल मेरे।

■ Children’s Day (India)
(Select lines from my Hindi poetry book)
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23 October, 2019

• उल्फ़त

उल्फ़त तो बस ही जाती है नशेमन-ए-चश्म में,
इश्क़ मुहताज नहीं होता मुलाक़ात-ओ-रू-ब-रू का.

(१-nest of eyes)
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22 October, 2019

• मुकम्मल

लब बस तअमील करने के क़ाबिल हैं,
अलफ़ाज़ महज़ ज़रीआ है इज़हार का,
जज़्बात अकसर मजबूर ही रह जाते हैं,
नायाब होता है मुकम्मल होना इश्क़ का.

(-obey, -words, -express, -emotions, -absolute)
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21 October, 2019

• हाल-ए-दिल

चाक-ए-जिगर को पानी है, नजात सैलाब-ए-ख़यालात से,
ज़िहन मगर चाहता है, भीगना आब-शार-ए-तसव्वुर में,
आसमाँ तो ख़ुद बेक़ाबू है, इल्तिजा-ए-रहम कहें तो किससे,
शमीम ने बेनिक़ाब किए जज़्बात, जो लिपटे थे पुरानी चादर में.

(१-wounded heart, २-shower of imagination, ३-plead mercy, ४-fragrant breeze)
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09 October, 2019

• ग़ज़ल

मत्ला-ए-विसाल हमारा, आब-ए-चश्म से लिखा तुमने,
जाने कितने अशआर बह गए, मेरे आब-ए-दीदा में,
तुम्हारी ग़ज़ल-ए-ज़ीस्त में, फ़न पाया मुआशरे ने,
मेरा हुनर-ए-इश्क़ मगर, दर्ज हुआ मक़्ता-ए-हिज्र में.

(१-first couplet of Ghazal of union, २&३-tears, ४-song of life, ५-concluding couplet of Ghazal of separation)
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05 October, 2019

• शोर

ख़ामोशी हो चुकी है आदी, शोर-ए-सवालात-ए-गिर्द की,
उल्फ़त मगर सिहर जाती है, महज़ सरगोशी-ए-ख़यालात से,
जुस्तजू-ओ-तसव्वुर में तरसना, है फ़ित्रत ख़ामोश तनहाई की,
शोर-ए-तख़्लिया से परीशाँ मगर, मुतअस़्स़िर भी उल्फ़त उसीसे.

(१-surrounding noise of queries, २-whisper of thoughts, ३-search & imagination, ४-noise of solitude, ५-inspired)
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29 September, 2019

• नवरात्रि

     भारत में नवरात्रि का त्योहार मनाने के तराइक़ मुख़्तलिफ़ हैं; लेकिन इसका नाक़ाबिल-ए-तक़्सीम हिस्सा होता है एक मुख़्तसर मगर अज़ीम दीया। नौ दिनों तक शब-ओ-रोज़ जलते दीये की सलीम लौ से फैलती रोशनी में फ़ज़ा आसूदा होती है। आरज़ू है, कि यह रोशनी हर शख़्स की ज़िंदगी अमन-ओ-सुकून से मुनव्वर करे।

हर लौ का पर्तोव बने, इस्तिलाह ग़ालिब हौसले की,
रोशन हों तारीक राहें, मन्फ़ी१० मिटे हर ज़िहन की,
फ़रोज़ाँ११ हो आलम इल्म१२ से, रहनुमाई में इल्मदाँ१३ की,
क़लम-ए-अदम-ए-तशद्दुद१४ लिखे, तहरीर मुस्तक़्बिल१५ की.

Navaraatri Greetings

(Navaraatri is an Indian festival)

(१-various, २-inseparable, ३-day & night, ४-calm, ५-contented, ६-illuminate, ७-gleam, ८-definition, ९-dark, १०-negativity, ११-illuminate, १२-knowledge, १३-scholar, १४-pen of non-violence, १५-future)
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28 September, 2019

• मनी जे वसले

हृदयी दडलेल्या भावना, कल्लोळ करती नयनी,
सहज लपविलेस देखील, प्रयत्ने लोचने मिटवुनी,
तळव्यांचा कंप तो अधीर, हृदयीचे गेला वदुनी,
उलगडले नयनांचे रहस्य, थरथरत्या पापण्यांनी।

(Select lines from my Marathi poetry book)
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27 September, 2019

• अश्क

बहना ही अकसर मुक़द्दर है, कभी सैलाब बन, कहीं आब-शार,
मक़्सूद है नम करना, आज लरज़ाँ लब, कल सुर्ख़ रुख़्सार,
कभी क़ैद-ए-मिश़गाँ में महफ़ूज़, कभी आज़ाद बहकर भी बेज़ार,
इक़बाल-ए-अश्क चाहे जो हो, निशाँ मगर छोड़ जाते हर बार.

(१-water spring, २-trembling, ३-captivity of eyelids, ४-fate of tears)
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26 September, 2019

• पर्दा

जज़्बात क़फ़स-ए-दिल में रखना आपका हक़ है, हुनर भी,
लरज़ाँ हथेली को कैसे छिपाओगे चिलमन में.

(१-cage of heart, २-trembling, ३-veil)
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25 September, 2019

• हक़ीक़त-ए-उल्फ़त

मुम्किन नहीं किसी का आना, दरमियान शमअ परवाने के,
निक़ाब भी शिकस्त खाती है हुनर-ए-परवाना से,
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ छिपाना, बस का नहीं चिलमन के,
कहकशाँ तक नाकाम रोकने में, बाराँ-ए-जज़्बात आसमाँ से.

(१-defeat, २-fragrance of tresses, ३-galaxy, ४-shower of emotions)
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24 September, 2019

• बेमतलब

कभी बेमतलब की हुई हरकत ही बेबहामसर्रतदे जाती है,
कहीं क़ुबूल हुई दुआ के सुकून में भी पाइंदगी नहीं होती.

(-precious, -joy, -permanency)
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23 September, 2019

• ज़िक्र-ए-उल्फ़त


सर-ए-आम ज़िक्र से क्यों परहेज़, चर्चा वाबस्तगी का ही हुआ करता है,
दास्ताँ-ए-उल्फ़त तहरीर हो जाती है, कहने-कहने में ज़माने के.

(१-closeness, २-story of love, ३-script)
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22 September, 2019

• इख़्तिताम


परवाने जलते ही रहते हैं पैहम शमअ की आस में,
इंतिज़ार-ए-सहर में जलना मुक़द्दरहै शमा का,
अंजुमनखो जाती है बुझती शमअ के धुएँ में,
क्या ख़ाक ही इख़्तिताम है, महफ़िल के हर परवाने का.

(-consistently, -waiting for dawn, -fate, -assembly, -culmination)
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21 September, 2019

• अमन


सुनहरा हर दाना मिटाए, भूख तर्क साँसों की,
मीठी हो उनकी धड़कन, रूठी ज़बाँ हो जिनकी,
शुआअ-ए-इल्म से अब, रोशन हों राहें सब की,
काइनात को करती ग़ालिब, डोरियाँ इन्सानियत की.

International Day of Peace
(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)

(अमन-peace, तर्क-abandoned, शुआअ-ए-इल्म-ray of knowledge, काइनात-universe, ग़ालिब-powerful)
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30 August, 2019

• मुट्ठी भर अनाज


    एक लंबे अरसे से किसानों की आत्महत्याओं ने देश के समक्ष बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न निर्माण कर दिया है। भ्रष्टाचार के अनेक पहलुओं में से ‘जागृति’ में तो केवल एक का वर्णन था। किसानों की समस्या भी भ्रष्टाचार का ही एक अहम्‌ पहलू है। सहस्रों करोड़ों की योजनाओं के घोटाले से विपुल इस देश में, कुकर्मियों ने अन्न की उपज तक को नहीं बख़्शा। विशेषज्ञों की राय में भविष्य का संघर्ष अन्न व जल के लिए ही होगा। हमारे देश की कृषि और किसानों की दयनीय स्थिति देखकर तो यह राय सत्य प्रतीत होती है। जो भी इस दुष्कृत्य में शामिल हैं वे शायद यह नहीं जानते, कि अन्न व जल के बिना न तो सत्ता और न ही ऐश्वर्य का कोई अस्तित्व है।
    हमारे देश की लगभग प्रत्येक समस्या की जड़ भ्रष्टाचार या हमारी संवेदनशून्य और बधिर प्रवृत्ति है। अत्यंत भीषण गरीबी में जीवन व्यतीत करते किसानों को खिलखिलाते खलिहानों में मुसकाते देखने हेतु न जाने और कितनी प्रतीक्षा करनी होगी।

कुछ तो हो तकनीक सुदृढ़, उपज भूमि की बढ़ाए,
योजना कुछ हो सफल अब, गंगा हर अब द्वार आए,
कुपित सृष्टि हो तो कोई, मदद के कुछ कर बढ़ाए,
बलि की संतानें ज़िंदा, रहें ऐसा प्रण बनाएँ।

Pola (A bull-worshipping festival)

(Select lines from my Hindi poetry book)

(Primarily a farmer’s festival of Maharashtra, ‘Pola’ is celebrated in some areas of Chattisgarh and Telagana too. Being backbone of Indian farming since ages and even today, bulls are worshipped every year on this auspicious new moon day of ‘Shraavan’ month of Hindu calendar.)
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23 August, 2019

• कहाँ हो तुम कृष्ण


     ‘कृष्ण’ से जुड़ी कहानियाँ तो बचपन से सुनता आया हूँ। कभी नटखट, कभी बहादुर, कहीं सलीम, तो कहीं रूठे; न जाने कितनी सूरतों में कृष्ण को पढ़ा और सुना। बचपन में सीधे मअने से ही देखता, इसलिए सारी कहानियाँ दिलकश लगती थीं। उम्र के साथ बढ़ती सोच ने यह एहसास कराया, कि हर कहानी महज़ तफ़्रीह नहीं, बल्कि दुनियवी लौस-ए-दुनिया को समझाता एक ख़ूबसूरत किताबचा है। तशद्दुद, तानाशाही और मन्फ़ी से आलूदा मौजूदा दौर में इन कहानियों के असल मअने समझना लाज़िमी है। कृष्ण ने भी तशद्दुद के तेवर अपनाए, मगर महज़ मन्फ़ी को हलाक करने की ख़ातिर। उन्होंने बेशक ज़नाँ को चिढ़ाया, मगर उस चिढ़ाने को अनचाही सूरत में तब्दील नहीं होने दिया। यही वजह थी, कि कृष्ण ने हज़ारों बेबस जनाँ की हिफ़ाज़त भी की। आज ज़नाँ तो क्या, हर मासूम, हर इन्सान ख़ौफ़ में जीने पर मजबूर है। वक़्त आ चुका है, कि हममें से हर शख़्स कृष्ण की ज़िहनियत के पहलुओं को ख़ुद में ढाले; वर्ना हमारा मुस्तक़्बिल यक़ीनन् मौजूदा हाल से भी तारीक होगा।

तुम्हें महज़ पुकार कर सँभले थे, परख़चे मज़्‌रूह इस्मत के,
तुम्हारे बस तसव्वुर से ही, धीरज रहे थे पांचाली के,
आज पशेमाँ है इन्सानियत, ग़ालिब हैं तेवर ग़ैर-मुहज़्ज़ब के,
ख़ौफ़नाक मौजूदा हालात, मुन्हदिम१० हवासिल११ ज़नान के.

वहशी लगा ही रहे हैं ठहाके, आबरूरेज़ी१२ सरे आम कर,
न ज़न बेख़ौफ़ रही न बचपन, न ज़र१३ महफ़ूज़ न ज़ेवर,
क़ादिर-ए-मुतलक़१४ कैसे मानें तुम्हें, ख़ामोश हो बावजूद सब जानकर,
क्या वाक़िई खो गए हो कृष्ण, या क़स्दन्१५ बैठे हो छिपकर.

■ जन्माष्टमी
(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)

(१-entertainment, २-worldly traps of illusion world, ३-violence, ४-negativity, ५-nature, ६-dark, ७-honour, ८-imagination, ९-uncouth, १०-shattered, ११-courage, १२-disgrace, १३-wealth, १४-most powerful, १५-purposely)
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15 August, 2019

• स्वतंत्र


असत्य फोफावले वावरात, सत्य उकिरड्यावर नासले,
भयभीत रम्य बालपण, केवळ जाहिरातीत हसले,
बीभत्स नागव्या लीलांनी, शील प्रत्येक चिरडले,
अनागोंदीच्या ज्वाळांंत, उपवन होरपळून गेले।

उल्लास का करावा, श्वास जे कोंडती फुलांचे,
पदन्यास गुलाम झाले, बेबंदशाहीच्या बेड्यांचे,
सुज्ञ शहारले ऐकून, पडसाद अराजकतेचे,
प्राण कंठाशी आले, स्वतंत्र बालगुलाबाचे।
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04 August, 2019

‘गीली हथेली’


     शालेय जीवन से इन्टर्नशिप पूर्ण होने तक कई मित्र हुए, किंतु इन्टर्नशिप के पश्चात मित्रों से भेंट कम ही होती थी। एक विचित्र सा ख़ालीपन महसूस होने लगा। पत्र भेजता, तो उनमेंसे कुछ ही जवाब लिखते। धीरे-धीरे सारे मित्र व्यस्त हो गए। दोनों ओर के पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक और व्यक्तिगत कारणों से संपर्क लगभग ख़त्म हो गया। मित्रों की बहुत याद आती। बीते वर्षों और वर्तमान की तमाम बातें किसीसे कहने का मन होता; किंतु दूरियाँ कुछ ऐसी बन गई थीं, कि कह न पाया। ई-मेल, फ़ेसबुक इत्यादि से तकनीकी रूप से तो सारे क़रीब आ गए थे; परंतु भावनात्मक दूरियाँ वैसीही रह गईं। एक दिन औपचारिकता की सारी बेड़ियाँ तोड़कर सोचा, कि पुराने दिनों की तरह ख़त ही लिख दूँ मित्र को। फिर क्या था; क़लम उठाया, तो सारा सैलाब ही काग़ज़ पर उतर आया।
     मित्र और मित्रता की परिभाषा एक ही रहेगी; फिर युग कृष्ण-सुदामा का हो, या थ्री इडियट्स का।

मेरी आँखों से बहे खारे पानी से,
तुम्हारी हथेली आज भी गीली है,
ज्वर में लिपटा था कभी जिससे,
तुम्हारे सीने की चादर क्या अभी भी गर्म है?
दर्द में कसकर पकड़ी थी मेरी कलाई तुमने,
उसपर सुर्ख़ निशाँ आज भी हैं,
दिलो-दिमाग़ पर खींचीं असंख्य रेखाएँ तुमने,
आज बेमिसाल चित्र बन चुकी हैं।

 Friendship Day
(Select lines from my Hindi poetry book)
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05 July, 2019

• मेरा हिंदी-उर्दू मज्मूआ-ए-कलाम

इशाअत

मुम्ताज़ मुहतरम/मुहतरमा,
आदाब-ओ-तस्लीमात।
     आज मेरे ‘बज़्म-ए-ख़यालात’ इस हिंदी-उर्दू मज्मूआ-ए-कलाम को शाएअ करते हुए मुझे ख़ुशी हो रही है। इस किताब (hardback) को ज़िक्र की गई क़ीमत अदा कर डाक के ज़रीए सभी मुल्कों में हासिल किया जा सकता है।

भारत: रु.१७५/किताब
बाक़ी मुल्क: रु.७०/किताब

     यदि आप इस किताब को ख़रीदने के ख़्वाहिशमंद हैं तो गुज़ारिश है, कि ई-मेल के ज़रीए आपके डाक-पते की जानकारी दें, और बैंक खाते में मुतअल्लिक़ा रक़म का भुगतान करें।

     Bank: Bank of Baroda
     Branch: South Ambazari Road Nagpur
     City: Nagpur (Dist: Nagpur)
     IFSC code: BARB0AMBAZA (fifth character is zero digit)
     Name of A/c holder: Jitendra Sudhakar Rachalwar
     Account No: 04990200000374
     Account type: Current

     ई-मेल में डाक-पते के अलावा भुगतान के Transaction ID/ Number/ Details की जानकारी भी ज़रूर लिखें। इसके बाद बीस दिनों के भीतर किताब हासिल न हो, तो ई-मेल के ज़रीए राबिता करें। किताब के चंद सफ़हे मुन्सलिक कर रहा हूँ।
ई-मेलः jsrachalwar@gmail.com

शुक्रिया।
तालिब-ए-ख़ैरख़्वाही,
(मेजर) डॉ. जितेंद्र सुधाकर राचलवार
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Publication

Distinguished Readers,
Namaskaar.
     It is a pleasure today to announce the publication of my Hindi-Urdu poetry book named ‘Bazm-E-Khayaalaat’. A hardback version of the book can be obtained in all countries through post by remitting the cost mentioned below.

India: Rs.175/- per copy
Other Countries: Rs.750/- per copy

     If you wish to purchase the book, please inform your postal address by e-mail and remit the applicable amount to the bank account. Bank details are:

     Bank: Bank of Baroda
     Branch: South Ambazari Road Nagpur
     City: Nagpur (Dist: Nagpur)
     IFSC code: BARB0AMBAZA (fifth character is zero digit)
     Name of A/c holder: Jitendra Sudhakar Rachalwar
     Account No: 04990200000374
     Account type: Current

     Please inform the Transaction ID/ Number/ Details too along with the postal address. In the event of non-receipt of the book within twenty days from the date of correspondence, please inform by e-mail. I am sharing a few pages of the book.

Thanks.
Soliciting your Best Wishes,
(Major) Dr JS Rachalwar
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