22 September, 2019

• इख़्तिताम


परवाने जलते ही रहते हैं पैहम शमअ की आस में,
इंतिज़ार-ए-सहर में जलना मुक़द्दरहै शमा का,
अंजुमनखो जाती है बुझती शमअ के धुएँ में,
क्या ख़ाक ही इख़्तिताम है, महफ़िल के हर परवाने का.

(-consistently, -waiting for dawn, -fate, -assembly, -culmination)
*****

2 comments:

Mohan said...

बहूत खूब

Jitendra Rachalwar (Rachal) said...

Thanks.