परवाने जलते ही
रहते हैं पैहम१, शमअ की आस में,
इंतिज़ार-ए-सहर२
में जलना मुक़द्दर३ है शमा का,
अंजुमन४ खो
जाती है बुझती शमअ के धुएँ में,
क्या ख़ाक ही
इख़्तिताम५ है, महफ़िल के हर परवाने का.
(१-consistently, २-waiting for
dawn, ३-fate, ४-assembly, ५-culmination)
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1 comment:
बहूत खूब
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