25 September, 2019

• हक़ीक़त-ए-उल्फ़त

मुम्किन नहीं किसी का आना, दरमियान शमअ परवाने के,
निक़ाब भी शिकस्त खाती है हुनर-ए-परवाना से,
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ छिपाना, बस का नहीं चिलमन के,
कहकशाँ तक नाकाम रोकने में, बाराँ-ए-जज़्बात आसमाँ से.

(१-defeat, २-fragrance of tresses, ३-galaxy, ४-shower of emotions)
*****

2 comments:

Dr.Makarand V.Khubalkar said...

अच्छा मज़्मून है। अभिनव कल्पना है।

Jitendra Rachalwar (Rachal) said...

जी शुक्रिया.