'कह दो
उन्हें'
जुदाई यक़ीनन् रंजीदगी देती है, मगर इसे सहने वालों
को इस दर्द की अजीब चाहत होती है। उँगली में काँटा चुभ जाए, तब भी दर्द कई दिनों तक
बरक़रार रहता है। अरसे तक जुदाई सहने वालों को दर्द बरदाश्त करने का हुनर जाने कहाँ
से हासिल होता है। अकसर ख़ामोश रहकर सहने वाले ऐसे लोगों में कुछ सरे आम बयाँ करने
वाले भी मिल जाते हैं। ऐसे ही एक 'शख़्स' ने दर्द न छिपाने की वजह मुझसे कुछ यों कही-
न ढँको यूँ तपिश को,
सेंक भी तो लेते हैं नफ़स,
फफोले न छिपाना, उन्हें
देख ही कोई खोल दे क़फ़स,
शोले दिखाने में क्यों
झिझक, शायद रोशन करेंगे तमस्,
बनकर ख़ाक उड़ना आसाँ
कहाँ, कह दो उन्हें नहीं हम बेबस.
(तपिश-distress, नफ़स-breath, क़फ़स-cage, तमस्-darkness, बेबस-helpless)
*****
'साथ'
जिसने दर्द न छिपाने की वजह कही थी, उस शख़्स से कल दोबारा मुलाक़ात हुई। उसने
ख़ुद को दर्द से पहले जितनाही बेख़बर रखा था। जब मैंने उससे इश्क़ के खोने का उसे ख़ास
अफ़सोस न होने की वजह जानना चाही, तो जुदाई को दिल से न लगाने की वजह उसने कुछ यूँ कही-
मुहब्बत देती है साथ, फ़ना होने तक,
यादें लिपटती हैं रूह के बस आख़िरी आह तक,
कौन देता है साथ यहाँ, कितना, कहाँ तक,
देखा है कभी साँसों को दफ़न होते अब तक?
(फ़ना-destroyed, रूह-soul, आह-sigh, दफ़न-bury)
*****
'उल्फ़त'
बेदर्दी अपनी शिद्दत से उल्फ़त को नातवाँ कर देती है, मगर उल्फ़त बेदर्दी को झुकाने की क़ाबिल भी होती है। बेदर्दी नादान होती है, उल्फ़त को काग़ज़ात में खोजती है। इस सच से अनजान और बेख़बर, कि उल्फ़त इतनी बेबस नहीं
होती, कि चीज़ों में क़ैद हो सके।
उल्फ़त ख़ामोश होती है, उसका कलाम नहीं बनता,
तिलिस्म-ए-रिश्ता से बयाँ होती है, बेज़ुबान एहसासात की नज़्म.
(उल्फ़त-love, बेदर्दी-rudeness, शिद्दत-intensity, नातवाँ-weak, कलाम-note, तिलिस्म-ए-रिश्ता-magic of relationship, नज़्म-ए-एहसास-poem of feelings, बेज़ुबान-mute)
*****
'बेदर्द'
दर्द और जुदाई को हँसते-हँसते सहने वाले उस शख़्स से
जब भी मिलता, मैं मायूस हो जाता। मैंने कोशिश कर एक रोज़ उसके दर्द की 'वजह' को ढूँढ़कर
कहा, “बहुत दर्द है उसे।” वजह ने कहा-
हम तो ख़ुशी से वजह बन जाएँ किसी
के काँटों की,
दर्द ख़ुशबू से ज़्यादा माहिर है
किसीकी याद दिलाने में.
*****
'वजह'
मैंने वजह से हुई मुलाक़ात और गुफ़्तगू का ख़ुलासा उस शख़्स से कहने के बावजूद वह
पहले जितनाही बेबाक था। जब मैंने वजह के अंदाज़ पर ज़रा भी ऐतराज़ न जताने की वजह पूछी, तो उसने कहा-
यूँ उनकी बेरुख़ी पर क्यों इलज़ाम लगाएँ बेवजह,
ख़ता तो हमारे दिल का है, उसे ज़रा भी समझा न सके.
(ख़ता-fault, बेरुख़ी-neglect)
*****
'ज़िंदा'
अपने दिल को समझाने में नाकाम उस शख़्स से
मैंने कहा, कि इतनी तक्लीफ़ सहने से तो बेहतर है, कि वह खुद के दिल को ही समझा दे। उसने
कहा-
न कहो उसे समझाने, दिल को बेचैन
ही रहने दो,
सैलाब-ए-जज़्बात में रंगा दिल ही
ज़िंदा लगता है.
(सैलाब-ए-जज़्बात-flood of emotions)
*****
'मरज़'
उस शख़्स की ‘ज़िंदा’दिली देख मुझे उसपर फ़ख़्र
हुआ। सोचा, कि उसके रंगे दिल की तस्वीर से वजह की रू-ब-रू कराऊँ; लेकिन मुलाक़ात हुई तो
जाना, कि जिसे किसीके दर्द की वजह बनने में कभी ख़ुशी महसूस हुई थी, वह ख़ुद ही आज मायूस
है। मैंने वजह से पूछा, “बात क्या है?” वजह ने कहा-
यह ग़म नहीं कि हम कभी न बन सके
उनके,
वह बने ही हैं हमारे अबतक, यही
बेरहम मरज़ है.
(ग़म-grief, बेरहम-ruthless, मरज़-ailment)
*****
'अश्क'
वजह का मरज़ जानकर महसूस हुआ, कि तक्लीफ़ दोनों को है। शख़्स ने उसकी तक्लीफ़ अब तक सरे आम बयाँ नहीं की थी, और वजह ने पहली बार
ही ज़िक्र किया था। बड़ा मुश्किल था पहचानना, कि किसका दर्द ज़्यादा है। मेरी बेचैनी जान
वजह ने ख़ुद ही कहा-
यूँ तो किसीके अश्क-ओ-ग़म किसीसे कम नहीं होते,
उनके बहें तो सैलाब, हमारे बहें तो क़ियामत ही
आ जाए.
(अश्क-ओ-ग़म-tears & grief, सैलाब-flood, क़ियामत-doom)
*****
'विदा'
दोनों तरफ़ के बेबस हालात देख लगा, कि शख़्स और वजह की गुफ़्तगू लाज़िम है। इत्तिफ़ाक़न् एक रोज़ उनकी रू-ब-रू हो ही गई।
शख़्स ने वजह को देखते ही कहा-
ढूँढ़ ही लेता है मुझे बड़ी आसानी से,
दर्द वाक़िफ़ हो गया है मेरे हर ठिकाने से.
वजह ने कहा-
माना कि हमारी बेरुख़ी में बहुत शिद्दत थी,
ख़फ़गी बयाँ करते तो गुमराह न होते.
शख़्स ने कहा-
कैसे उम्मीद रखते दरारों में झाँकने की,
खुला दरवाज़ा भी आपने किया अनदेखा.
वजह ने कहा-
चुप्पी हमारी क़ाबिलीयत सी बन गई थी,
ख़ामोशी का हुनर आप ही से सीखा था.
शख़्स ने कहा-
हमें बदल दिया आपने आपके हुनर से,
अब तो अक्स भी ग़ैर लगता है.
वजह ने कहा-
पुराने कभी बदले ही नहीं,
वरना इश्क़ भी नई शिद्दत से करते.
शख़्स ने कहा-
हमने तराइक़ बदले आपके अंदाज़-ए-बयाँ के मुताबिक़,
ठोकरें खाईं हमने मगर, नाज़ आपको अंदाज़-ए-बेरुख़ी का था.
वजह ने कहा-
हमारी बेरुख़ी से भी ज़्यादा आपके अंदाज़ बेदर्द थे,
निशाँ देखकर भी पूछा, इंतिहा-ए-तक्लीफ़ क्यों है.
शख़्स ने कहा-
मिल्कियत समझ बैठे आपको, यही तक्लीफ़ थी हमारी,
ख़ुद लुटकर आपकी जफ़ा जो कमाई थी हमने.
वजह ने कहा-
ग़म यही है, कि हमपर जफ़ा का बस था,
तबाही रोक न सके दुतर्फ़ा, क़फ़स बड़ा बेरहम था.
एक लंबी ख़ामोशी के बाद शख़्स और वजह ने एक दूसरे से ख़ामोशी से ही विदा ली, मगर विदा लेते वक़्त दोनों के दिलों में सुकून था। शायद इसलिए, कि-
माना, कि हसीन यादें रोशन करती हैं ज़िंदगी,
सूखे पत्तों की सरसराहट भी नायाब नग़्मात सुनाती है.
(वाक़िफ़-aware, बेरुख़ी-neglect, शिद्दत-intensity, ख़फ़गी-resentment, गुमराह-lost way, दरार-defect, क़ाबिलीयत-ability, हुनर-skill, अक्स-reflection, ग़ैर-unfamiliar, अंदाज़-ए-बयाँ-way
of submission, नाज़-pride, अंदाज़-ए-बेरुख़ी-way
of ignorance, बेदर्द-rude, निशाँ-scars, इंतिहा-ए-तक्लीफ़-limit of
sorrow, मिल्कियत-earning, जफ़ा-extreme
rudeness, तबाही-destruction, नायाब-unique)
*****
12 April, 2017
ख़ूँ-ओ-ख़ंजर
ट्रम्प चला सँवारने, किरमिच-ए-समंदर लहू से,
किम हुआ है क़िर्मिज़ी, इरादा-ए-इंतिक़ाम से,
करे कौन फ़िक्र-ए-अवाम, बीमार सब जुनूँ-ए-जंग
से,
कहो होगा इन्सान कब तक, ख़ूँ ख़ंजर-ए-रंजिश से.
(ख़ूँ-ओ-ख़ंजर-blood & dagger, किरमिच-ए-समंदर-canvas of sea, क़िर्मिज़ी-red, इरादा-ए-इंतिक़ाम-intention
to vengeance, फ़िक्र-ए-अवाम-concern about citizens, जुनूँ-ए-जंग-insane desire
for war, ख़ूँ-murdered), ख़ंजर-ए-रंजिश-dagger of hostility)
*****
कैफ़ियत-ए-उल्लू
बाशिंदा हूँ शाइस्ता, काली गहरी के सन्नाटों का,
ख़ामोश मुसाफ़िर, दरख़्तों की ग़ैर-महदूद सल्तनत का,
कहीं इबादत-ए-दौलतमंद, कहीं फ़िरिश्ता हूँ मौत का,
इन्सान नादाँ क्या जाने, दर्द तनहाई-ए-तारीकी का.
(कैफ़ियत-ए-उल्लू-state of affairs of Owl, शाइस्ता-polite, दरख़्त-tree, ग़ैर-महदूद-without bounds, इबादत-ए-दौलतमंद-worship by rich, फ़िरिश्ता-messenger, तनहाई-ए-तारीकी-lonely feeling during darkness)
*****
07 October, 2017
बेगम अख़्तर
तनहाई भी हुई बेनज़ीर१, सदा-ए-मलिका-ए-ग़ज़ल से,
जहाँ-ए-मूसीक़ी है रोशन, आफ़ताब-ए-दादरा२ से,
मुतमइन बज़्म-ए-मुम्ताज़३, आब-शार-ए-ठुमरी से,
है गूँजता हिंदोस्ताँ आज भी, तरन्नुम-ए-‘अख़्तरी’४ से.
■ यौम-ए-विलादत५
(ख़िराज-ए-तहसीन६)
(१-unique, २-sun of Dadra, ३-assembly of distiguished, ४-melody of Akhtari ‘maiden name of Begum Akhtar was Akhtaribai Faizabadi’, ५-birthday, ६-tribute)
*****
09 December, 2017
होमी व्यारावाला
क़ैद हुई हर अदा-ए-ख़ास, आपकी माहिर अक्कासी में,
नक़्श बन वह तस्वीरें बस गईं, तमाम
दिल-ए-‘जवाहर’ में,
हुए मुलव्वन पल-ए-माज़ी वह सारे, रंग सियाह-ओ-सफ़ेद में,
आपकी शख़्सियत मज़्मून-ए-तहसीन आज भी, बसारत-ए-मुआशरा में.
Homai Vyarawalla’s birthday
(अदा-ए-ख़ास-mannerisms
of famous, अक्कासी-photography, नक़्श-impression, दिल-ए-‘जवाहर’-heart
of gem like people, मुलव्वन-colourful, पल-ए-माज़ी-past moment, सियाह-ओ-सफ़ेद-black
& white, मज़्मून-ए-तहसीन-subject of admiration, बसारत-ए-मुआशरा-view of
society)
*****
27 December, 2017
मिर्ज़ा ग़ालिब
तमन्ना-ए-ज़र१ न
छुई आपको, न ख़्वाहिश अल्क़ाब-ओ-ताज२ की,
आलम ने किया
एहतिराम-ए-ज़बाँ३, वुस्अत-ए-हुनर४ थी आपकी,
बेक़रार पाते हैं सुकून ज़ीनत-ए-लफ़्ज़ से, आसूदा५ हर साँस बेचैन की,
बेनज़ीर मअना-ए-अलफ़ाज़६ बढ़ाते,
रौनक़ हर शाम-ए-अंजुमन७ की.
■ यौम-ए-विलादत
(ख़िराज-ए-तहसीन)
(१-desire
of wealth, २-titles & crown, ३-honour of language, ४-extent of talent,
५-satisfied, ६-meaning of words, ७-an evening assembly, यौम-ए-विलादत-birthday, ख़िराज-ए-तहसीन-tribute)
*****
26
December, 2018
बाबा आमटे
हर ठुकराई हुई रूह को, सँवारा पनाह-ओ-इल्म१
से,
बियाबाँ२ भी खिल उठा,
‘आनंदवन’ के गुलों से,
न ख़िताब-ओ-ताज३ का
ग़ुरूर, न बहले आप शुहरत से,
क़ाइम४ है वुजूद-ए-इन्सानियत५,
आप की सी इमदाद६ से.
आज़ादी-ए-वतन की ख़ातिर चले, राह-ए-अदम-ए-तशद्दुद७ पर,
इम्तियाज़८ को दी शिकस्त,
इन्सानियत को अपनाकर,
मुहब्बत और तवाज़ो९
कमाई, बेशुमार दौलत ठुकराकर,
निशाँ बनाए सरमद१०,
‘दाग़’-ए-नफ़्रत११ मिटाकर.
Baba Amte’s birthday
(१-shelter & knowledge, २-jungle, ३-title & crown, ४-established, ५-existence of
humanity, ६-assistance, ७-path of non-violence, ८-discrimination, ९-respect, १०-immortal,
११-patch(of leprosy) of hatred)
*****
08 March, 2019
परवाज़-ए-निस्वाँँ
करो तर्क मायूसी ज़िहन की, रहो न अब तुम नातवाँ१,
महज़ उफ़क़२ न हो मंज़िल, लाँघो हुदूद-ए-कहकशाँ३,
पाओ मराहिल४ यूँ मुन्फ़रिद५, कि बने हर वतन रश्क-ए-जिनाँ६,
लिखे इस्तिलाह-ए-फ़राज़७ अब, हर परवाज़-ए-निस्वाँ८.
■ International Women’s Day
(१-weak, २-horizon, ३-bounds of galaxy, ४-goals, ५-unique, ६-envied even by heaven, ७-definition of height, ८-flight of women)
*****
• इख़्तिताम
परवाने जलते ही रहते
हैं पैहम१ शमअ की आस में,
इंतिज़ार-ए-सहर२
में जलना मुक़द्दर३ है शमअ का,
अंजुमन४ खो
जाती है बुझती शमअ के धुएँ में,
क्या ख़ाक ही इख़्तिताम५
है, महफ़िल के हर परवाने का.
(१-repeatedly,
२-waiting for dawn, ३-fate, ४-assembly, ५-culmination)
*****
• ज़िक्र-ए-उल्फ़त
सरे आम ज़िक्र से क्यों परहेज़,
चर्चा हमेशा वाबस्तगी१ का ही हुआ करता है,
दास्ताँ-ए-उल्फ़त२ तहरीर३
हो जाती है, कहने-कहने में ज़माने के.
(१-closeness,
२-story of love, ३-script)
*****
• बेमतलब
कभी बेमतलब की हुई हरकत ही मसर्रत१
दे जाती है,
कहीं क़ुबूल हुई दुआ के सुकून में
भी पाइंदगी२ नहीं होती.
(१-joy, २-permanency)
*****
• हक़ीक़त-ए-उल्फ़त
मुम्किन नहीं किसी का आना, दरमियान शमअ परवाने के,
निक़ाब शिकस्त१ खाती है हुनर-ए-परवाना से,
शमीम-ए-ज़ुल्फ़२ छिपाना,
बस का नहीं चिलमन के,
कहकशाँ३ तक नाकाम रोकने
में, बाराँ-ए-जज़्बात४ आसमाँ से.
(१-defeat, २-fragrance of tresses, ३-galaxy, ४-shower of emotions)
*****
• पर्दा
जज़्बात क़फ़स-ए-दिल१
में रखना आपका हक़ है, हुनर भी,
लरज़ाँ२
हथेली को कैसे छिपाओगे चिलमन३ में.
(१-cage
of heart, २-trembling, ३-veil)
*****
• अश्क
बहना ही अकसर मुक़द्दर है, कहीं सैलाब बन, कहीं आब-शार१,
मक़्सूद है नम
करना, आज लरज़ाँ२ लब, कल सुर्ख़ रुख़्सार,
कभी क़ैद-ए-मिश़गाँ३
में महफ़ूज़, कभी आज़ाद बहकर भी बेज़ार,
इक़बाल-ए-अश्क४
चाहे जो हो, निशाँ मगर छोड़ जाते हर बार.
(१-water
spring, २-trembling, ३-captivity of eyelids, ४-fate of tears)
*****
•
शोर
ख़ामोशी हो चुकी है आदी, शोर-ए-सवालात-ए-गिर्द१ की,
उल्फ़त मगर सिहर उठती है, महज़ सरगोशी-ए-ख़यालात२ से,
जुस्तजू-ओ-तसव्वुर३
में तरसना, फ़ित्रत ख़ामोश तनहाई की,
शोर-ए-तख़्लिया४
से परीशाँ मगर, मुतअस़्स़िर५ भी उल्फ़त उसीसे.
(१-surrounding
noise of queries, २-whisper of thoughts, ३-search & imagination, ४-noise of
solitude, ५-inspired)
• ग़ज़ल
मत्ला-ए-विसाल१
हमारा, आब-ए-चश्म२ से लिखा तुमने,
जाने कितने अशआर
बह गए, मेरे आब-ए-दीदा३ में,
तुम्हारी
ग़ज़ल-ए-ज़ीस्त४ में, फ़न पाया मुआशरे ने,
मेरा हुनर-ए-इश्क़
मगर, दर्ज हुआ मक़्ता-ए-हिज्र५ में.
(१-first
couplet of Ghazal of union, २&३-tears, ४-song of life, ५-concluding
couplet of Ghazal of separation)
*****
• हाल-ए-दिल
चाक-ए-जिगर१
चाहता है, नजात सैलाब-ए-ख़यालात से,
ज़िहन मगर राज़ी है, भीगने आब-शार-ए-तसव्वुर२ में,
आसमाँ तो ख़ुद
बेक़ाबू है, इल्तिजा-ए-रहम३ कहें तो किससे,
शमीम४ ने
बेनिक़ाब किए जज़्बात, जो लिपटे थे पुरानी चादर में.
(१-wounded
heart, २-shower of imagination, ३-plead mercy, ४-fragrant breeze)
*****
• मुकम्मल
लब बस तअमील करने
के क़ाबिल हैं,
अलफ़ाज़ महज़ ज़रीआ है
इज़हार का,
जज़्बात अकसर मजबूर
होते हैं,
नायाब होता है मुकम्मल
होना इश्क़ का.
*****
• उल्फ़त
उल्फ़त तो बस ही
जाती है नशेमन-ए-चश्म१ में,
इश्क़ मुहताज नहीं होता
मुलाक़ात-ओ-रू-ब-रू का.
(१-nest
of eyes)
*****
03
December, 2019
• अंजाम
ख़ता हुआ है अरसे
से, ख़ामोश रहकर ज़ुल्म सहते ही रहने का,
जुर्म भी हुआ,
बेज़बाँ रहकर सितम१ के ख़िलाफ़ जंग न छेड़ने का,
आँखों पर बँधी
पट्टी बेबस, यक़ीन न रहा एअतिदाल-ए-तराज़ू२ का,
मजबूर अवाम
गवाह-ओ-शिकार मुद्दत से, क़हर-ओ-रवैया-ए-क़ातिल३ का.
(१-oppression,
२-equilibrium of weighing scale, ३-cruelty & attitude of assassin)
*****
19 December, 2019
• बँटवारा
ख़फ़गी१
सरहदों से क्यों बेवजह, उनसे तो होती है महज़ नक़्शे में तरमीम२,
ख़ता तल्ख़३ ख़यालात का, मुतअस़्स़िर४ जिससे मुद्दत से मुहब्बत
समीम५,
लकीरों से बनाए
निशाँ ज़मीं पर मगर, कैसे बाँटोगे आब-ओ-हवा की शमीम६,
छेड़ी दिल-ओ-ज़िहन के बँटवारे ने, जाने कब तक चलेगी यह जंग-ए-तक़्सीम७.
(१-displeasure,
२-amendment, ३-bitter, ४-affected, ५-unadulterated, ६-fragrance,
७-battle of division)
*****
• तश्वीश
एहसान तअस़्स़ुर-ए-तसव्वुर१
का, जिसने सँभाली तनहाई मुद्दत से,
हमनफ़स जो बना रहा
दाइमन्२, पल-ए-आग़ाज़-ए-फ़साना से,
तश्वीश३,
कि क्या हो अंजाम, जो मुजस्सम४ हो चंद लमहात गुज़रे से,
हौसला ग़ालिब५
न रहा माज़ी सा, कैसे पाएँगे नजात सैलाब से.
(१-influence
of imagination, २-consistent, ३-apprehension, ४-actual, ५-strong)
*****
• कशमकश
मुसल्सल१
मुक़ाबला दिल-ओ-ज़िहन के दरमियान,
सिलसिला-ए-ज़ीस्त२
बना है आग़ाज़-ए-फ़साना से,
दिल की ख़ातिर
धड़कने का सबब दर्द की दास्तान३,
कशमकश४ करे ज़िहन, मिटाने हर्फ़-ए-दर्द५ हिकायत६ से.
(१-consistent, २-order of life, ४-struggle, ५-an alphabet of pain, ३&६-story)
*****
• ख़ता
ज़माने भर के आब-ए-हराम१ का, पैहम२ सुना है शिकवा हुस्न से,
निशाँ-ए-हुस्न होते आए हैं रुसवा३, दाइमन्४ ज़ालिम ज़माने से,
क़ुसूर आब-ए-इशरत५ का नहीं, उल्फ़त पशेमाँ६ मुद्दत से जिससे,
ख़ता ज़िहनियत का है, जो मुसल्सल७ मुतअस़्स़िर८ कैफ़ से.
(१&५-liquor, २&७-repeatedly, ३-defame, ४-consistently, ६-ashamed, ८-driven)
*****
20 May, 2020
शीरीं-ओ-शादाब
तपती ख़ुश्क फ़ज़ा
सँभलती, सुन कोयल की शीरीं१ बहर२,
मायूस चहचहों की
हौसलाअफ़्ज़ाई३, करता क़िर्मिज़ी४ गुलमोहर,
बेज़ार शाम को
सुकून दिलाती, जाफ़री५ गुलों की चादर,
शब्बो सहलाती
बेक़रार शब, शमीम६ में लिपटी सहर७.
(शीरीं-ओ-शादाब-sweet
& colourful, १-sweet, २-poem, ३-morale boosting, ४-red, ५-yellow,
६-fragrance, ७-dawn)
*****
•
नाज़-ओ-अफ़सोस
हमने शिद्दत१
से तराशा ख़ुद के नज़रिये को,
कि अफ़सोस२
न जता सकें उन्हें खोने का,
इस क़द्र गुमराह३
किया टूटे हुए दिल को,
ज़िहन४ नाज़
करने लगा है, दर्द-ए-तनहाई५ का.
(१-intensity,
२-regret, ३-mislead, ४-mind, ५-pain of loneliness)
*****
• सफ़र-ए-ज़ीस्त
आग़ोश में लिए
मन्फ़ी१ से ही, वुजूद बनता है दरिया का,
शायद इसी कड़वाहट
का तअस्सुर२, हौसला देता है उभरने का.
ज़िहन में ज़हर भरा
हो, तो लाज़िम३ है पैरवी झूठ की,
उतरती शक्ल दरअसल,
कैफ़ियत४ कहती है मायूसी की.
ग़ैरइख़्तियारी५
है हर साँस की ख़ातिर, बढ़ना दर्द-ओ-उम्र का,
मरहम बनता है नफ़स६,
क़सूरवार भी ज़ख़्म-ए-मुस्तक़्बिल७ का.
बढ़ते क़दमों को
खींचती, बेशुमार८ फैली भीड़ में,
मिल जाता
हौसलाअफ़ज़ा, गाहबगाह९ रहगुज़र में.
सुकून का ही अक्स
देखा पैहम१०, मंज़िल पाए हुए हर शख़्स में,
उनकी मुस्कानें
बनी हमराह, रहनुमा भी सफ़र-ए-ज़ीस्त११ में.
कौन हुआ है आज़ाद,
बंद-ए-दस्तूर-ए-दुनिया१२ से,
कौन उठा सका है
चिलमन, सिर्र-ए-क़ैद-ए-हयात१३ से.
(सफ़र-ए-ज़ीस्त-journey
of life, १-negativity, २-influence, ३-inevitable, ४-saga, ५-unavoidable, ६-breath,
७-wounds of future, ८-plenty, ९-occasionally, १०-always, ११-journey of life, १२-chains
of rules of world, १३-mystery of captivity of life)
*****
•
अख़लाक़
जिससे उभरे उसी
मिट्टी में मिलना, मुक़द्दर१ होता है हर दिल का,
दिलदारी से जहाँ
को आसूदा२ करना ही, मक़्सद हो हर धड़कन का.
ज़बाँ न हो बेपर्वा,
अलफ़ाज़ से मज़्रूह३ न हो जिगर,
भीड़ में क़ाइम करें तअर्रुफ़४, तेरे शाइस्ता अंदाज़-ओ-फ़न-ओ-हुनर.
आज का वल्वला५
रवाँ जवाँ, सहारा बने हर ग़ैरइख़्तियारी६ बुढ़ापे का,
शीरीं७
ज़िहनियत ही ज़रीआ हो, दिलों में बसी ख़फ़गी८ पर फ़तह पाने का.
(अख़लाक़-virtuous,
१-fate, २-contented, ३-wounded, ४-identity, ५-enthusiasm, ६-unavoidable, ७-sweet,
८-displeasure)
*****
•
ख़ता-ओ-अंजाम
ख़ता मेरा ही था
शायद, गुनाहगारों से रखी उम्मीद-ए-करम१,
अपनों ने ही माँगा
हिसाब, ग़ैरों से क्यों करें शिकवा-ए-सितम२.
मेरी बेग़रज़ी और
मेरे तहम्मुल३, ग़लत ही साबित हुए मुसल्सल४,
थी मुझमें ख़ामियाँ
अनगिनत मगर, ज़माना भी कहाँ था मुकम्मल५.
बलंदी का क़द नहीं
होता, न होती है परवाज़६ की कोई हद,
मुक़ाम किसीको नहीं
होता मयस्सर७, फिर भी हौसला होता है अज़हद८.
हर सादगी सहती है
दग़ा, शराफ़त जूझती है तौहीन९ से,
ख़ामोशी-ए-सदाक़त१०
भी चुभ जाए, क्या अंजाम हो शाइस्ता११ जबाँ से.
(ख़ता-ओ-अंजाम-fault and outcome, १-expectation of blessings, २-complaining
of injustice, ३-tolerance, ४-constantly, ५-absolute, ६-flight, ७-achieve, ८-unbound,
९-insult, १०-silence of truth, ११-decent)*****
•
भँवर
जिस अज़ीज़ की ख़ातिर
तय की, कद-ओ-काविश१ भरी पेचीदा रहगुज़र२,
उसी क़रीब ने डाली
बेड़ियाँ, जिससे शादाब३ था हर पल का पस-ए-मंज़र४,
क़दमों में उलझे रिश्तों
के भँवर, धुँधली कर गए दिल-ओ-ज़िहन५ की नज़र,
मुआफ़ी-ओ-शुक्रगुज़ारी६
से परहेज़, ज़ीस्त७ को कर गया बेक़रार-ओ-बेज़र८.
(१-busy
life, २-path, ३-colourful, ४-background, ५-heart and mind, ६-apology and gratitude,
७-life, ८-restless and poor)
*****
•
संग-ए-ज़र
क़दम चलते रहे
गुज़रगाह१, हर मोड़ पर पड़ाव को मेरा इंतिज़ार था,
सुकून पाने पर
एहसास हुआ, कि मैं तो मंज़िल की मुकम्मल२ तलाश था.
दरिया में लगाए
गोते ने सिखाए, अलिफ़-बे३ तह-ए-ज़िंदगी४ तक जाने के,
सीखी ग़ालिब की
तवाज़ो५, जब आग़ोश में खोया समंदर के.
सदाक़त-ए-शीशा-ए-दिल६
ने, पिघला दिया पत्थर की शदीदगी७ को,
पुख़्ता भी थे
मिज़ाज-ए-दिल८, ललकारा न क़ाबिलीयत-ए-संग९ को.
ख़ुददार मुहताज
नहीं होता, ख़ुदग़रज़१० दुनिया के रहम का,
हर कामयाब रूह
मगर, नतीजा होता है अनजान सजदे११ का.
(संग-ए-ज़र-milestone,
१-path, २-absolute, ३-alphabet, ४-secret of life, ५-respect, ६-truthfulness of
glass like heart, ७-toughness, ८-attitude of heart, ९-capability of a rock, १०-selfish,
११-prayers)
*****
• रौशन
तुम्हारे पर्तोव१
से ही साक़िब२ था, हर तारीक गोशा-ए-ज़ीस्त३,
तुम्हारी ख़ाक-ए-वजूद४
लाँघ ही पाए थे, मनचाही सुबह के मंज़र.
(१-glow,
२-illuminated, ३-corner of life, ४-ashes of existence)
*****
परवाना-ए-महफ़िल को
अफ़सोस न था, तमाम ख़्वाहिशों के क़त्ल१ का,
शमअ-ए-ग़ैर२
के अरमान पूरे किए थे, ख़ुद की आरज़ू को फ़ना३ कर.
(क़त्ल-ए-ख़्वाहिश-execution
of wish, १-execution, २-flare of stranger, ३-wipe out)
*****
• बेचारगी
मेरी बेचारगी के
बिखरे हुए क़त्रों१ के जाम,
ज़िहन२
में उतार रहा है बेख़बर ज़माना,
कल जो निकलेंगे
अरमान बज़्म३ के,
जाने क्या सूरत
होगी उन अश्क-ओ-ग़म४ की.
(१-bit,
२-mind, ३-assembly, ४-tears and grief)
*****
• बेख़बर
मैं वाक़िफ़ हूँ
तुम्हारे ग़म से मगर, वह मुशाबा१ नहीं मेरे रंज से,
न मुझे इल्म२
तुम्हारी कोफ़्त३ का, मेरे ज़ख़्म से अनजान तुम भी,
हर
लहू-ए-चाक-ए-जिगर४ बेख़बर रहता है दर्द-ए-ग़ैर से,
हर इश्क़५
जुदा होता है, हर चोट का दर्द भी,
(१-similar,
२-aware, ३-distress, ४-ooze of wounded heart, ५-love)
*****
• तस्कीन
उलझनों से
मुतअस्सिर१ है, क़ाइम भी,
कशमकश-ए-ज़िंदगी२
का हौसला,
पेशानी३
से बहती खारी बूँदों से ही,
मुसकुराहट की ज़ीनत४
है.
(तस्कीन-contentment,
१-influenced, २-struggle of life, ३-forehead, ४-beauty)
*****
• मँझार
मुझे बहाता चला
गया मेरे ख़िलाफ़,
ज़माने से सुनी हुई तौहीन१
का तअस्सुर२,
मैं नावाक़िफ़ रहा
मेरी ख़ुदएतिमादी३ से,
क्यों इलज़ाम४
लगाऊँ ग़ैरों पर.
(१-offend,
२-influence, ३-self-confidence, ४-blame)
*****
• बयाँ
यूँ चिलमन१
में न रखा करो मिज़ाज,
लाज़िम२
है कभी-कभार अलफ़ाज़ भी आज़माना,
कहीं ऐसा न हो, कि
तुम्हारा तबस्सुम मसर्रत-ए-वस्ल३ कहे,
और ज़माना समझ ले
हिज़्र४ का फ़साना.
(१-veil,
२-necessary, ३-joy of union, ४-separation)
*****
01 January, 2024
• कल
और आज
एक ओर गुज़रा हुआ
ख़ामोश पल,
तज्रुबा और पुख़्तगी१
का फ़ैज़ान२,
दूसरी ओर वल्वला-अफ़ज़ा३
मौजूदा घड़ी,
मासूम और हौसलामंद
अरमान४,
आज की रहगुज़र५
ही करती है तय,
आनेवाले कल के
बुनियाद-ओ-अरकान६,
बीता हुआ लमहा हर
करता है तहरीर७,
मुस्तक़्बिल८
वक़्त की ज़ीनत-ए-मुसकान.
(१-maturity,
२-abundance, ३-cheering, ४-aspiration, ५-path, ६-foundation and pillars, ७-script,
८-future)
■ New Year Greetings
*****
2 comments:
Bahot khub bahot ache 👌
Bahot khub bahot ache 👌
Post a Comment