• हिंदी-उर्दू दालान

'कह दो उन्हें'

   जुदाई यक़ीनन् रंजीदगी देती है, मगर इसे सहने वालों को इस दर्द की अजीब चाहत होती है। उँगली में काँटा चुभ जाए, तब भी दर्द कई दिनों तक बरक़रार रहता है। अरसे तक जुदाई सहने वालों को दर्द बरदाश्त करने का हुनर जाने कहाँ से हासिल होता है। अकसर ख़ामोश रहकर सहने वाले ऐसे लोगों में कुछ सरे आम बयाँ करने वाले भी मिल जाते हैं। ऐसे ही एक 'शख़्स' ने दर्द न छिपाने की वजह मुझसे कुछ यों कही-

न ढँको यूँ तपिश को, सेंक भी तो लेते हैं नफ़स,
फफोले न छिपाना, उन्हें देख ही कोई खोल दे क़फ़स,
शोले दिखाने में क्यों झिझक, शायद रोशन करेंगे तमस्,
बनकर ख़ाक उड़ना आसाँ कहाँ, कह दो उन्हें नहीं हम बेबस.

(तपिश-distress, नफ़स-breath, क़फ़स-cage, तमस्-darkness, बेबस-helpless)
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'साथ'

   जिसने दर्द न छिपाने की वजह कही थी, उस शख़्स से कल दोबारा मुलाक़ात हुई। उसने ख़ुद को दर्द से पहले जितनाही बेख़बर रखा था। जब मैंने उससे इश्क़ के खोने का उसे ख़ास अफ़सोस न होने की वजह जानना चाही, तो जुदाई को दिल से न लगाने की वजह उसने कुछ यूँ कही-

मुहब्बत देती है साथ, फ़ना होने तक,
यादें लिपटती हैं रूह के बस आख़िरी आह तक,
कौन देता है साथ यहाँ, कितना, कहाँ तक,
देखा है कभी साँसों को दफ़न होते अब तक?

(फ़ना-destroyed, रूह-soul, आह-sigh, दफ़न-bury)
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'उल्फ़त'

   बेदर्दी अपनी शिद्दत से उल्फ़त को नातवाँ कर देती है, मगर उल्फ़त बेदर्दी को झुकाने की क़ाबिल भी होती है। बेदर्दी नादान होती है, उल्फ़त को काग़ज़ात में खोजती है। इस सच से अनजान और बेख़बर, कि उल्फ़त इतनी बेबस नहीं होती, कि चीज़ों में क़ैद हो सके।

उल्फ़त ख़ामोश होती है, उसका कलाम नहीं बनता,
तिलिस्म-ए-रिश्ता से बयाँ होती है, बेज़ुबान एहसासात की नज़्म.

(उल्फ़त-love, बेदर्दी-rudeness, शिद्दत-intensity, नातवाँ-weak, कलाम-note, तिलिस्म-ए-रिश्ता-magic of relationship, नज़्म-ए-एहसास-poem of feelingsबेज़ुबान-mute)
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'बेदर्द'

   दर्द और जुदाई को हँसते-हँसते सहने वाले उस शख़्स से जब भी मिलता, मैं मायूस हो जाता। मैंने कोशिश कर एक रोज़ उसके दर्द की 'वजह' को ढूँढ़कर कहा, “बहुत दर्द है उसे।” वजह ने कहा-
हम तो ख़ुशी से वजह बन जाएँ किसी के काँटों की,
दर्द ख़ुशबू से ज़्यादा माहिर है किसीकी याद दिलाने में.
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'वजह'

   मैंने वजह से हुई मुलाक़ात और गुफ़्तगू का ख़ुलासा उस शख़्स से कहने के बावजूद वह पहले जितनाही बेबाक था। जब मैंने वजह के अंदाज़ पर ज़रा भी ऐतराज़ न जताने की वजह पूछी, तो उसने कहा-
यूँ उनकी बेरुख़ी पर क्यों इलज़ाम लगाएँ बेवजह,
ख़ता तो हमारे दिल का है, उसे ज़रा भी समझा न सके.

(ख़ता-fault, बेरुख़ी-neglect)
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'ज़िंदा'

   अपने दिल को समझाने में नाकाम उस शख़्स से मैंने कहा, कि इतनी तक्लीफ़ सहने से तो बेहतर है, कि वह खुद के दिल को ही समझा दे। उसने कहा-
न कहो उसे समझाने, दिल को बेचैन ही रहने दो,
सैलाब-ए-जज़्बात में रंगा दिल ही ज़िंदा लगता है.

(सैलाब-ए-जज़्बात-flood of emotions)
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'मरज़'

   उस शख़्स की ‘ज़िंदा’दिली देख मुझे उसपर फ़ख़्र हुआ। सोचा, कि उसके रंगे दिल की तस्वीर से वजह की रू-ब-रू कराऊँ; लेकिन मुलाक़ात हुई तो जाना, कि जिसे किसीके दर्द की वजह बनने में कभी ख़ुशी महसूस हुई थी, वह ख़ुद ही आज मायूस है। मैंने वजह से पूछा, “बात क्या है?” वजह ने कहा-
यह ग़म नहीं कि हम कभी न बन सके उनके,
वह बने ही हैं हमारे अबतक, यही बेरहम मरज़ है.

(ग़म-grief, बेरहम-ruthless, मरज़-ailment)
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'अश्क'

   वजह का मरज़ जानकर महसूस हुआ, कि तक्लीफ़ दोनों को है। शख़्स ने उसकी तक्लीफ़ अब तक सरे आम बयाँ नहीं की थी, और वजह ने पहली बार ही ज़िक्र किया था। बड़ा मुश्किल था पहचानना, कि किसका दर्द ज़्यादा है। मेरी बेचैनी जान वजह ने ख़ुद ही कहा-
यूँ तो किसीके अश्क-ओ-ग़म किसीसे कम नहीं होते,
उनके बहें तो सैलाब, हमारे बहें तो क़ियामत ही आ जाए.

(अश्क-ओ-ग़म-tears & grief, सैलाब-flood, क़ियामत-doom)
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'विदा'

   दोनों तरफ़ के बेबस हालात देख लगा, कि शख़्स और वजह की गुफ़्तगू लाज़िम है। इत्तिफ़ाक़न् एक रोज़ उनकी रू-ब-रू हो ही गई।

शख़्स ने वजह को देखते ही कहा-
ढूँढ़ ही लेता है मुझे बड़ी आसानी से,
दर्द वाक़िफ़ हो गया है मेरे हर ठिकाने से.

वजह ने कहा-
माना कि हमारी बेरुख़ी में बहुत शिद्दत थी,
ख़फ़गी बयाँ करते तो गुमराह न होते.

शख़्स ने कहा-
कैसे उम्मीद रखते दरारों में झाँकने की,
खुला दरवाज़ा भी आपने किया अनदेखा.

वजह ने कहा-
चुप्पी हमारी क़ाबिलीयत सी बन गई थी,
ख़ामोशी का हुनर आप ही से सीखा था.

शख़्स ने कहा-
हमें बदल दिया आपने आपके हुनर से,
अब तो अक्स भी ग़ैर लगता है.

वजह ने कहा-
पुराने कभी बदले ही नहीं,
वरना इश्क़ भी नई शिद्दत से करते.

शख़्स ने कहा-
हमने तराइक़ बदले आपके अंदाज़-ए-बयाँ के मुताबिक़,
ठोकरें खाईं हमने मगर, नाज़ आपको अंदाज़-ए-बेरुख़ी का था.

वजह ने कहा-
हमारी बेरुख़ी से भी ज़्यादा आपके अंदाज़ बेदर्द थे,
निशाँ देखकर भी पूछा, इंतिहा-ए-तक्लीफ़ क्यों है.

शख़्स ने कहा-
मिल्कियत समझ बैठे आपको, यही तक्लीफ़ थी हमारी,
ख़ुद लुटकर आपकी जफ़ा जो कमाई थी हमने.

वजह ने कहा-
ग़म यही है, कि हमपर जफ़ा का बस था,
तबाही रोक न सके दुतर्फ़ा, क़फ़स बड़ा बेरहम था.

          एक लंबी ख़ामोशी के बाद शख़्स और वजह ने एक दूसरे से ख़ामोशी से ही विदा ली, मगर विदा लेते वक़्त दोनों के दिलों में सुकून था। शायद इसलिए, कि-

माना, कि हसीन यादें रोशन करती हैं ज़िंदगी,
सूखे पत्तों की सरसराहट भी नायाब नग़्मात सुनाती है.


(वाक़िफ़-aware, बेरुख़ी-neglect, शिद्दत-intensity, ख़फ़गी-resentment, गुमराह-lost way, दरार-defect, क़ाबिलीयत-ability, हुनर-skill, अक्स-reflection, ग़ैर-unfamiliar, अंदाज़-ए-बयाँ-way of submission, नाज़-pride, अंदाज़-ए-बेरुख़ी-way of ignorance, बेदर्द-rude, निशाँ-scars, इंतिहा-ए-तक्लीफ़-limit of sorrow, मिल्कियत-earning, जफ़ा-extreme rudeness, तबाही-destruction, नायाब-unique)
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12 April, 2017
ख़ूँ-ओ-ख़ंजर

ट्रम्प चला सँवारने, किरमिच-ए-समंदर लहू से,
किम हुआ है क़िर्मिज़ी, इरादा-ए-इंतिक़ाम से,
करे कौन फ़िक्र-ए-अवाम, बीमार सब जुनूँ-ए-जंग से,
कहो होगा इन्सान कब तक, ख़ूँ ख़ंजर-ए-रंजिश से.

(ख़ूँ-ओ-ख़ंजर-blood & dagger, किरमिच-ए-समंदर-canvas of sea, क़िर्मिज़ी-red, इरादा-ए-इंतिक़ाम-intention to vengeance, फ़िक्र-ए-अवाम-concern about citizens, जुनूँ-ए-जंग-insane desire for war, ख़ूँ-murdered), ख़ंजर-ए-रंजिश-dagger of hostility)
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कैफ़ियत-ए-उल्लू

बाशिंदा हूँ शाइस्ता, काली गहरी के सन्नाटों का,

ख़ामोश मुसाफ़िर, दरख़्तों की ग़ैर-महदूद सल्तनत का,
कहीं इबादत-ए-दौलतमंद, कहीं फ़िरिश्ता हूँ मौत का,
इन्सान नादाँ क्या जाने, दर्द तनहाई-ए-तारीकी का.

(कैफ़ियत-ए-उल्लू-state of affairs of Owl, शाइस्ता-polite, दरख़्त-tree, ग़ैर-महदूद-without bounds, इबादत-ए-दौलतमंद-worship by rich, फ़िरिश्ता-messenger, तनहाई-ए-तारीकी-lonely feeling during darkness)
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07 October, 2017
बेगम अख़्तर

तनहाई भी हुई बेनज़ीर, सदा-ए-मलिका-ए-ग़ज़ल से,
जहाँ-ए-मूसीक़ी है रोशन, आफ़ताब-ए-दादरा से,
मुतमइन बज़्म-ए-मुम्ताज़, आब-शार-ए-ठुमरी से,
है गूँजता हिंदोस्ताँ आज भी, तरन्नुम-ए-‘अख़्तरी’ से.

 यौम-ए-विलादत
(ख़िराज-ए-तहसीन)
(१-unique, २-sun of Dadra, ३-assembly of distiguished, ४-melody of Akhtari ‘maiden name of Begum Akhtar was Akhtaribai Faizabadi’, ५-birthday, ६-tribute)
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09 December, 2017
होमी व्यारावाला

क़ैद हुई हर अदा-ए-ख़ास, आपकी माहिर अक्कासी में,
नक़्श बन वह तस्वीरें बस गईं, तमाम दिल-ए-‘जवाहर’ में,
हुए मुलव्वन पल-ए-माज़ी वह सारे, रंग सियाह-ओ-सफ़ेद में,
आपकी शख़्सियत मज़्मून-ए-तहसीन आज भी, बसारत-ए-मुआशरा में.
Homai Vyarawalla’s birthday
(अदा-ए-ख़ास-mannerisms of famous, अक्कासी-photography, नक़्श-impression, दिल-ए-‘जवाहर’-heart of gem like people, मुलव्वन-colourful, पल-ए-माज़ी-past moment, सियाह-ओ-सफ़ेद-black & white, मज़्मून-ए-तहसीन-subject of admiration, बसारत-ए-मुआशरा-view of society)
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27 December, 2017
मिर्ज़ा ग़ालिब

तमन्ना-ए-ज़र न छुई आपको, न ख़्वाहिश अल्क़ाब-ओ-ताज की,
आलम ने किया एहतिराम-ए-ज़बाँ, वुस्अत-ए-हुनर थी आपकी,
बेक़रार पाते हैं सुकून ज़ीनत-ए-लफ़्ज़ से, आसूदा हर साँस बेचैन की,
बेनज़ीर मअना-ए-अलफ़ाज़ बढ़ाते, रौनक़ हर शाम-ए-अंजुमन की.

■ यौम-ए-विलादत
(ख़िराज-ए-तहसीन)
For Marathi article about Mirza Ghalib, please click on https://jsrachalwar.blogspot.com/2019/12/blog-post_13.html
(१-desire of wealth, २-titles & crown, ३-honour of language, ४-extent of talent, ५-satisfied, ६-meaning of words, ७-an evening assembly, यौम-ए-विलादत-birthday, ख़िराज-ए-तहसीन-tribute)
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26 December, 2018
बाबा आमटे

हर ठुकराई हुई रूह को, सँवारा पनाह-ओ-इल्म से,
बियाबाँ भी खिल उठा, ‘आनंदवन’ के गुलों से,
न ख़िताब-ओ-ताज का ग़ुरूर, न बहले आप शुहरत से,
क़ाइम है वुजूद-ए-इन्सानियत, आप की सी इमदाद से.

आज़ादी-ए-वतन की ख़ातिर चले, राह-ए-अदम-ए-तशद्दुद पर,
इम्तियाज़ को दी शिकस्त, इन्सानियत को अपनाकर,
मुहब्बत और तवाज़ो कमाई, बेशुमार दौलत ठुकराकर,
निशाँ बनाए सरमद१०, ‘दाग़’-ए-नफ़्रत११ मिटाकर.

Baba Amte’s birthday

(१-shelter & knowledge, २-jungle, ३-title & crown, ४-established, ५-existence of humanity, ६-assistance, ७-path of non-violence, ८-discrimination, ९-respect, १०-immortal, ११-patch(of leprosy) of hatred)
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08 March, 2019
परवाज़-ए-निस्वाँँ

करो तर्क मायूसी ज़िहन की, रहो न अब तुम नातवाँ,
महज़ उफ़क़ न हो मंज़िल, लाँघो हुदूद-ए-कहकशाँ,
पाओ मराहिल यूँ मुन्फ़रिद, कि बने हर वतन रश्क-ए-जिनाँ,
लिखे इस्तिलाह-ए-फ़राज़ अब, हर परवाज़-ए-निस्वाँ.

■ International Women’s Day

(१-weak, २-horizon, ३-bounds of galaxy, ४-goals, ५-unique, ६-envied even by heaven, ७-definition of height, ८-flight of women)
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इख़्तिताम

परवाने जलते ही रहते हैं पैहम शमअ की आस में,
इंतिज़ार-ए-सहर में जलना मुक़द्दरहै शमअ का,
अंजुमनखो जाती है बुझती शमअ के धुएँ में,
क्या ख़ाक ही इख़्तिताम है, महफ़िल के हर परवाने का.

(१-repeatedly, २-waiting for dawn, ३-fate, ४-assembly, ५-culmination)
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ज़िक्र-ए-उल्फ़त

सरे आम ज़िक्र से क्यों परहेज़, चर्चा हमेशा वाबस्तगी का ही हुआ करता है,
दास्ताँ-ए-उल्फ़त तहरीर हो जाती है, कहने-कहने में ज़माने के.

(१-closeness, २-story of love, ३-script)
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बेमतलब

कभी बेमतलब की हुई हरकत ही मसर्रत दे जाती है,
कहीं क़ुबूल हुई दुआ के सुकून में भी पाइंदगी नहीं होती.

(१-joy, २-permanency)
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हक़ीक़त-ए-उल्फ़त

मुम्किन नहीं किसी का आना, दरमियान शमअ परवाने के,
निक़ाब शिकस्त खाती है हुनर-ए-परवाना से,
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ छिपाना, बस का नहीं चिलमन के,
कहकशाँ तक नाकाम रोकने में, बाराँ-ए-जज़्बात आसमाँ से.

(१-defeat, २-fragrance of tresses, ३-galaxy, ४-shower of emotions)
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पर्दा

जज़्बात क़फ़स-ए-दिल में रखना आपका हक़ है, हुनर भी,
लरज़ाँ हथेली को कैसे छिपाओगे चिलमन में.

(१-cage of heart, २-trembling, ३-veil)
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अश्क

बहना ही अकसर मुक़द्दर है, कहीं सैलाब बन, कहीं आब-शार,
मक़्सूद है नम करना, आज लरज़ाँ लब, कल सुर्ख़ रुख़्सार,
कभी क़ैद-ए-मिश़गाँ में महफ़ूज़, कभी आज़ाद बहकर भी बेज़ार,
इक़बाल-ए-अश्क चाहे जो हो, निशाँ मगर छोड़ जाते हर बार.

(१-water spring, २-trembling, ३-captivity of eyelids, ४-fate of tears)
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शोर

ख़ामोशी हो चुकी है आदी, शोर-ए-सवालात-ए-गिर्द की,
उल्फ़त मगर सिहर उठती है, महज़ सरगोशी-ए-ख़यालात से,
जुस्तजू-ओ-तसव्वुर में तरसना, फ़ित्रत ख़ामोश तनहाई की,
शोर-ए-तख़्लिया से परीशाँ मगर, मुतअस़्स़िर भी उल्फ़त उसीसे.

(१-surrounding noise of queries, २-whisper of thoughts, ३-search & imagination, ४-noise of solitude, ५-inspired)
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ग़ज़ल

मत्ला-ए-विसाल हमारा, आब-ए-चश्म से लिखा तुमने,
जाने कितने अशआर बह गए, मेरे आब-ए-दीदा में,
तुम्हारी ग़ज़ल-ए-ज़ीस्त में, फ़न पाया मुआशरे ने,
मेरा हुनर-ए-इश्क़ मगर, दर्ज हुआ मक़्ता-ए-हिज्र में.

(१-first couplet of Ghazal of union, २&३-tears, ४-song of life, ५-concluding couplet of Ghazal of separation)
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हाल-ए-दिल

चाक-ए-जिगर चाहता है, नजात सैलाब-ए-ख़यालात से,
ज़िहन मगर राज़ी है, भीगने आब-शार-ए-तसव्वुर में,
आसमाँ तो ख़ुद बेक़ाबू है, इल्तिजा-ए-रहम कहें तो किससे,
शमीम ने बेनिक़ाब किए जज़्बात, जो लिपटे थे पुरानी चादर में.

(१-wounded heart, २-shower of imagination, ३-plead mercy, ४-fragrant breeze)
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मुकम्मल

लब बस तअमील करने के क़ाबिल हैं,
अलफ़ाज़ महज़ ज़रीआ है इज़हार का,
जज़्बात अकसर मजबूर होते हैं,
नायाब होता है मुकम्मल होना इश्क़ का.
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उल्फ़त

उल्फ़त तो बस ही जाती है नशेमन-ए-चश्म में,
इश्क़ मुहताज नहीं होता मुलाक़ात-ओ-रू-ब-रू का.

(१-nest of eyes)
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03 December, 2019
अंजाम

ख़ता हुआ है अरसे से, ख़ामोश रहकर ज़ुल्म सहते ही रहने का,
जुर्म भी हुआ, बेज़बाँ रहकर सितम के ख़िलाफ़ जंग न छेड़ने का,
आँखों पर बँधी पट्टी बेबस, यक़ीन न रहा एअतिदाल-ए-तराज़ू का,
मजबूर अवाम गवाह-ओ-शिकार मुद्दत से, क़हर-ओ-रवैया-ए-क़ातिल का.

(१-oppression, २-equilibrium of weighing scale, ३-cruelty & attitude of assassin)
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19 December, 2019
बँटवारा

ख़फ़गी सरहदों से क्यों बेवजह, उनसे तो होती है महज़ नक़्शे में तरमीम,
ख़ता तल्ख़ ख़यालात का, मुतअस़्स़िर जिससे मुद्दत से मुहब्बत समीम,
लकीरों से बनाए निशाँ ज़मीं पर मगर, कैसे बाँटोगे आब-ओ-हवा की शमीम,
छेड़ी दिल-ओ-ज़िहन के बँटवारे ने, जाने कब तक चलेगी यह जंग-ए-तक़्सीम.

(१-displeasure, २-amendment, ३-bitter, ४-affected, ५-unadulterated, ६-fragrance, ७-battle of division)
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तश्वीश

एहसान तअस़्स़ुर-ए-तसव्वुर का, जिसने सँभाली तनहाई मुद्दत से,
हमनफ़स जो बना रहा दाइमन्, पल-ए-आग़ाज़-ए-फ़साना से,
तश्वीश, कि क्या हो अंजाम, जो मुजस्सम हो चंद लमहात गुज़रे से,
हौसला ग़ालिब न रहा माज़ी सा, कैसे पाएँगे नजात सैलाब से.

(१-influence of imagination, २-consistent, ३-apprehension, ४-actual, ५-strong)
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कशमकश

मुसल्सल मुक़ाबला दिल-ओ-ज़िहन के दरमियान,
सिलसिला-ए-ज़ीस्त बना है आग़ाज़-ए-फ़साना से,
दिल की ख़ातिर धड़कने का सबब दर्द की दास्तान,
कशमकश करे ज़िहन, मिटाने हर्फ़-ए-दर्द हिकायत से.

(१-consistent, २-order of life, ४-struggle, ५-an alphabet of pain, ३&६-story)
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• ख़ता

ज़माने भर के आब-ए-हराम का, पैहम सुना है शिकवा हुस्न से,
निशाँ-ए-हुस्न होते आए हैं रुसवा, दाइमन् ज़ालिम ज़माने से,
क़ुसूर आब-ए-इशरत का नहीं, उल्फ़त पशेमाँ मुद्दत से जिससे,
ख़ता ज़िहनियत का है, जो मुसल्सल मुतअस़्स़िर कैफ़ से.

(१&५-liquor, २&७-repeatedly, ३-defame, ४-consistently, ६-ashamed, ८-driven)
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20 May, 2020
शीरीं-ओ-शादाब

तपती ख़ुश्क फ़ज़ा सँभलती, सुन कोयल की शीरीं बहर,
मायूस चहचहों की हौसलाअफ़्ज़ाई, करता क़िर्मिज़ी गुलमोहर,
बेज़ार शाम को सुकून दिलाती, जाफ़री गुलों की चादर,
शब्बो सहलाती बेक़रार शब, शमीम में लिपटी सहर.

(शीरीं-ओ-शादाब-sweet & colourful, १-sweet, २-poem, ३-morale boosting, ४-red, ५-yellow, ६-fragrance, ७-dawn)
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नाज़-ओ-अफ़सोस

हमने शिद्दत से तराशा ख़ुद के नज़रिये को,
कि अफ़सोस न जता सकें उन्हें खोने का,
इस क़द्र गुमराह किया टूटे हुए दिल को,
ज़िहन नाज़ करने लगा है, दर्द-ए-तनहाई का.

(१-intensity, २-regret, ३-mislead, ४-mind, ५-pain of loneliness)
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सफ़र-ए-ज़ीस्त

आग़ोश में लिए मन्फ़ी से ही, वुजूद बनता है दरिया का,

शायद इसी कड़वाहट का तअस्सुर, हौसला देता है उभरने का.

ज़िहन में ज़हर भरा हो, तो लाज़िम है पैरवी झूठ की,
उतरती शक्ल दरअसल, कैफ़ियत कहती है मायूसी की.

ग़ैरइख़्तियारी है हर साँस की ख़ातिर, बढ़ना दर्द-ओ-उम्र का,
मरहम बनता है नफ़स, क़सूरवार भी ज़ख़्म-ए-मुस्तक़्बिल का.

बढ़ते क़दमों को खींचती, बेशुमार फैली भीड़ में,
मिल जाता हौसलाअफ़ज़ा, गाहबगाह रहगुज़र में.

सुकून का ही अक्स देखा पैहम१०, मंज़िल पाए हुए हर शख़्स में,
उनकी मुस्कानें बनी हमराह, रहनुमा भी सफ़र-ए-ज़ीस्त११ में.

कौन हुआ है आज़ाद, बंद-ए-दस्तूर-ए-दुनिया१२ से,
कौन उठा सका है चिलमन, सिर्र-ए-क़ैद-ए-हयात१३ से.

(सफ़र-ए-ज़ीस्त-journey of life, १-negativity, २-influence, ३-inevitable, ४-saga, ५-unavoidable, ६-breath, ७-wounds of future, ८-plenty, ९-occasionally, १०-always, ११-journey of life, १२-chains of rules of world, १३-mystery of captivity of life)
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अख़लाक़

जिससे उभरे उसी मिट्टी में मिलना, मुक़द्दर होता है हर दिल का,

दिलदारी से जहाँ को आसूदा करना ही, मक़्सद हो हर धड़कन का.

ज़बाँ न हो बेपर्वा, अलफ़ाज़ से मज़्रूह न हो जिगर,
भीड़ में क़ाइम करें तअर्रुफ़, तेरे शाइस्ता अंदाज़-ओ-फ़न-ओ-हुनर.

आज का वल्वला रवाँ जवाँ, सहारा बने हर ग़ैरइख़्तियारी बुढ़ापे का,
शीरीं ज़िहनियत ही ज़रीआ हो, दिलों में बसी ख़फ़गी पर फ़तह पाने का.

(अख़लाक़-virtuous, १-fate, २-contented, ३-wounded, ४-identity, ५-enthusiasm, ६-unavoidable, ७-sweet, ८-displeasure)
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ख़ता-ओ-अंजाम

ख़ता मेरा ही था शायद, गुनाहगारों से रखी उम्मीद-ए-करम,

अपनों ने ही माँगा हिसाब, ग़ैरों से क्यों करें शिकवा-ए-सितम.

मेरी बेग़रज़ी और मेरे तहम्मुल, ग़लत ही साबित हुए मुसल्सल,
थी मुझमें ख़ामियाँ अनगिनत मगर, ज़माना भी कहाँ था मुकम्मल.

बलंदी का क़द नहीं होता, न होती है परवाज़ की कोई हद,
मुक़ाम किसीको नहीं होता मयस्सर, फिर भी हौसला होता है अज़हद.

हर सादगी सहती है दग़ा, शराफ़त जूझती है तौहीन से,
ख़ामोशी-ए-सदाक़त१० भी चुभ जाए, क्या अंजाम हो शाइस्ता११ जबाँ से.

(ख़ता-ओ-अंजाम-fault and outcome, १-expectation of blessings, २-complaining of injustice, ३-tolerance, ४-constantly, ५-absolute, ६-flight, ७-achieve, ८-unbound, ९-insult, १०-silence of truth, ११-decent)
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• भँवर

जिस अज़ीज़ की ख़ातिर तय की, कद-ओ-काविश भरी पेचीदा रहगुज़र,

उसी क़रीब ने डाली बेड़ियाँ, जिससे शादाब था हर पल का पस-ए-मंज़र,
क़दमों में उलझे रिश्तों के भँवर, धुँधली कर गए दिल-ओ-ज़िहन की नज़र,
मुआफ़ी-ओ-शुक्रगुज़ारी से परहेज़, ज़ीस्त को कर गया बेक़रार-ओ-बेज़र.

(१-busy life, २-path, ३-colourful, ४-background, ५-heart and mind, ६-apology and gratitude, ७-life, ८-restless and poor)
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• संग-ए-ज़र

क़दम चलते रहे गुज़रगाह, हर मोड़ पर पड़ाव को मेरा इंतिज़ार था,

सुकून पाने पर एहसास हुआ, कि मैं तो मंज़िल की मुकम्मल तलाश था.

दरिया में लगाए गोते ने सिखाए, अलिफ़-बे तह-ए-ज़िंदगी तक जाने के,
सीखी ग़ालिब की तवाज़ो, जब आग़ोश में खोया समंदर के.

सदाक़त-ए-शीशा-ए-दिल ने, पिघला दिया पत्थर की शदीदगी को,
पुख़्ता भी थे मिज़ाज-ए-दिल, ललकारा न क़ाबिलीयत-ए-संग को.

ख़ुददार मुहताज नहीं होता, ख़ुदग़रज़१० दुनिया के रहम का,
हर कामयाब रूह मगर, नतीजा होता है अनजान सजदे११ का.

(संग-ए-ज़र-milestone, १-path, २-absolute, ३-alphabet, ४-secret of life, ५-respect, ६-truthfulness of glass like heart, ७-toughness, ८-attitude of heart, ९-capability of a rock, १०-selfish, ११-prayers)
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रौशन

तुम्हारे पर्तोव से ही साक़िब था, हर तारीक गोशा-ए-ज़ीस्त,

तुम्हारी ख़ाक-ए-वजूद लाँघ ही पाए थे, मनचाही सुबह के मंज़र.

(१-glow, २-illuminated, ३-corner of life, ४-ashes of existence)
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क़त्ल-ए-ख़्वाहिश

परवाना-ए-महफ़िल को अफ़सोस न था, तमाम ख़्वाहिशों के क़त्ल का,

शमअ-ए-ग़ैर के अरमान पूरे किए थे, ख़ुद की आरज़ू को फ़ना कर.

(क़त्ल-ए-ख़्वाहिश-execution of wish, १-execution, २-flare of stranger, ३-wipe out)
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बेचारगी


मेरी बेचारगी के बिखरे हुए क़त्रों के जाम,
ज़िहन में उतार रहा है बेख़बर ज़माना,
कल जो निकलेंगे अरमान बज़्म के,
जाने क्या सूरत होगी उन अश्क-ओ-ग़म की.

(१-bit, २-mind, ३-assembly, ४-tears and grief)
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बेख़बर


मैं वाक़िफ़ हूँ तुम्हारे ग़म से मगर, वह मुशाबा नहीं मेरे रंज से,
न मुझे इल्म तुम्हारी कोफ़्त का, मेरे ज़ख़्म से अनजान तुम भी,
हर लहू-ए-चाक-ए-जिगर बेख़बर रहता है दर्द-ए-ग़ैर से,
हर इश्क़ जुदा होता है, हर चोट का दर्द भी,

(१-similar, २-aware, ३-distress, ४-ooze of wounded heart, ५-love)
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तस्कीन


उलझनों से मुतअस्सिर है, क़ाइम भी,
कशमकश-ए-ज़िंदगी का हौसला,
पेशानी से बहती खारी बूँदों से ही,
मुसकुराहट की ज़ीनत है.

(तस्कीन-contentment, १-influenced, २-struggle of life, ३-forehead, ४-beauty)
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मँझार


मुझे बहाता चला गया मेरे ख़िलाफ़,
ज़माने से सुनी हुई तौहीन का तअस्सुर,
मैं नावाक़िफ़ रहा मेरी ख़ुदएतिमादी से,
क्यों इलज़ाम लगाऊँ ग़ैरों पर.

(१-offend, २-influence, ३-self-confidence, ४-blame)
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बयाँ


यूँ चिलमन में न रखा करो मिज़ाज,
लाज़िम है कभी-कभार अलफ़ाज़ भी आज़माना,
कहीं ऐसा न हो, कि तुम्हारा तबस्सुम मसर्रत-ए-वस्ल कहे,
और ज़माना समझ ले हिज़्र का फ़साना.

(१-veil, २-necessary, ३-joy of union, ४-separation)
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01 January, 2024
 कल और आज

एक ओर गुज़रा हुआ ख़ामोश पल,

तज्रुबा और पुख़्तगी का फ़ैज़ान,
दूसरी ओर वल्वला-अफ़ज़ा मौजूदा घड़ी,
मासूम और हौसलामंद अरमान,
आज की रहगुज़र ही करती है तय,
आनेवाले कल के बुनियाद-ओ-अरकान,
बीता हुआ लमहा हर करता है तहरीर,
मुस्तक़्बिल वक़्त की ज़ीनत-ए-मुसकान.

(१-maturity, २-abundance, ३-cheering, ४-aspiration, ५-path, ६-foundation and pillar, ७-script, ८-future)

■ New Year Greetings

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3 comments:

adwait said...

Bahot khub bahot ache 👌

adwait said...

Bahot khub bahot ache 👌

Jitendra Rachalwar (Rachal) said...

Shukriya Adwait.