24 January, 2021

• टूटा खिलौना

     स्त्री-वर्ग पर अत्याचार विश्वभर में चिंता का विषय है। विभिन्न देशों में कारण भी विविध हैं, किंतु भारत की बात करें तो व्यवस्था पर अमूमन निर्देश जाता है। व्यवस्था हमसे अलग नहीं है। हम सब व्यवस्था का हिस्सा हैं। क्या इसका अर्थ यह है, कि हममें ही कहीं न कहीं खोट है? यह सवाल हमेशा मुझे परेशान करता था।
     एक दिन मुझे किसी परिचित परिवार की ओर से उनके बेटे के नामकरण का निमंत्रण प्राप्त हुआ। समारोह में पहुँचकर बात-बात में मैंने महिला से कहा, “वाह भाभी, देर से ही सही, लेकिन आपके घर पालना आ ही गया।” महिला बोली, “भाईसाहब, पालना तो कबका आ चुका होता।”
     एक अरसे से मुझे परेशान कर रहे सवाल का दर्दनाक जवाब कितनी सहजता से मिल गया।

तुमने मुझे काट फेंका, निर्ममता से कूड़े में,

अंग तो कर्ण ने भी काटे थे, किंतु महादान में,
तुम भी मुझे दान करती, किसी गुमनाम सूनी गोद में,
तुम्हारी अमावस थी, कौमुदी बन फैलती उसके जीवन में।

■ National Girl Child Day
(Select lines from my Hindi poetry book)
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