23 May, 2022

• रौशन

तुम्हारे पर्तोव से ही साक़िब था, हर तारीक गोशा-ए-ज़ीस्त,
तुम्हारी ख़ाक-ए-वजूद लाँघ ही पाए थे, मनचाही सुबह के मंज़र.

(१-glow, २-illuminated, ३-corner of life, ४-ashes of existence)
*****

19 May, 2022

• संग-ए-ज़र

क़दम चलते रहे गुज़रगाह, हर मोड़ पर पड़ाव को मेरा इंतिज़ार था,

सुकून पाने पर एहसास हुआ, कि मैं तो मंज़िल की मुकम्मल तलाश था.

दरिया में लगाए गोते ने सिखाए, अलिफ़-बे तह-ए-ज़िंदगी तक जाने के,
सीखी ग़ालिब की तवाज़ो, जब आग़ोश में खोया समंदर के.

सदाक़त-ए-शीशा-ए-दिल ने, पिघला दिया पत्थर की शदीदगी को,
पुख़्ता भी थे मिज़ाज-ए-दिल, ललकारा न क़ाबिलीयत-ए-संग को.

ख़ुददार मुहताज नहीं होता, ख़ुदग़रज़१० दुनिया के रहम का,
हर कामयाब रूह मगर, नतीजा होता है अनजान सजदे११ का.

(संग-ए-ज़र-milestone, १-path, २-absolute, ३-alphabet, ४-secret of life, ५-respect, ६-truthfulness of heart (made) of glass, ७-toughness, ८-attitude of heart, ९-capability of a rock, १०-selfish, ११-prayers)
*****

18 May, 2022

• The Quest

Unfulfilled desires were plenty, and were distressing indeed,
But inspired me to move on, to cruise and to succeed.

Pleasing gestures and smiles, made me forget the pain,
Sparked the courage within, to bear the brunt and to sustain.

Occasionally I got drenched in the content of achieved ambitions,
Aroused hidden vigour too, the shattered dreams and frustrations.

Sometimes I ignored a vocal truth, believed in the lies unspoken,
Oblivious to honest promises, I relied on the assurance broken.

Teachings guided my thoughts, paved the way to proceed,
Wisdom kept the courage within, judged my ability to lead.

Every so often I have failed, to fathom the deepness of relations,
Only to find my existence, scattered in the storm of emotions.

Endless search for joyous, pursuit for serene is unending,
Life breaths relentlessly, to keep the quest unceasing.

(Select lines from my English poetry book)
*****

16 May, 2022

• भँवर

जिस अज़ीज़ की ख़ातिर तय की, कद-ओ-काविश भरी पेचीदा रहगुज़र,
उसी क़रीब ने डाली बेड़ियाँ, जिससे शादाब था हर पल का पस-ए-मंज़र,
क़दमों में उलझे रिश्तों के भँवर, धुँधली कर गए दिल-ओ-ज़िहन की नज़र,
मुआफ़ी-ओ-शुक्रगुज़ारी से परहेज़, ज़ीस्त को कर गया बेक़रार-ओ-बेज़र.

(१-busy life, २-path, ३-colourful, ४-background, ५-heart and mind, ६-apology and gratitude, ७-life, ८-restless and poor)
*****

15 May, 2022

• सार

हर कठिनाई ने बढ़ना सिखाया, कार्यशीलता को कर चपल,
परिवर्तित भी किए लक्ष्य में, मेरे सकल जतन विश्रुंखल।

आपत्ति की रम्य श्रुंखला, उत्साहों के कवन सुनाती,
सुप्त चरणों को कर जागृत फिर, उचित पथों पर क्रमण कराती।

कभी न टूटें धैर्य व संयम, कोई गरज गर मुझपर बरसे,
शत्रु न कोई, सभी मित्र हैं, कोई न आहत हों मुझसे।

यत्न हैं मेरे पथिक व साथी, कृपा की न मुझको अभिलाषा,
प्रयास, कर्म और परिश्रम से ही, मेरे भाग्य की है परिभाषा।
*****

13 May, 2022

• ख़ता-ओ-अंजाम

ख़ता मेरा ही था शायद, गुनाहगारों से चाहा करम,
अपनों ने ही माँगा हिसाब, ग़ैरों से क्यों करें शिकवा-ए-सितम.

मेरी बेग़रज़ी और मेरे तहम्मुल, ग़लत ही साबित हुए मुसल्सल,
थी मुझमें ख़ामियाँ अनगिनत मगर, ज़माना भी कहाँ था मुकम्मल.

बलंदी का क़द नहीं होता, न होती है परवाज़ की कोई हद,
मुक़ाम किसीको नहीं होता मयस्सर, फिर भी हौसला होता है अज़हद.

हर सादगी सहती है दग़ा, शराफ़त जूझती है तौहीन से,
ख़ामोशी-ए-सदाक़त१० भी चुभती जिन्हें, क्या अंजाम हो शाइस्ता११ जबाँ से.

(ख़ता-ओ-अंजाम-fault and outcome, १-blessing, २-complaining of injustice, ३-intolerance, ४-constantly, ५-absolute, ६-flight, ७-achieve, ८-unbound, ९-insult, १०-silence of truth, ११-decent)
*****

12 May, 2022

• अख़लाक़

जिससे उभरे उसी मिट्टी में मिलना, मुक़द्दर होता है हर दिल का,
दिलदारी से जहाँ को आसूदा करना ही, मक़्सद हो हर धड़कन का.

ज़बाँ न हो बेपर्वा, अलफ़ाज़ से मज़्रूह न हो जिगर,
भीड़ में क़ाइम करें तेरा तअर्रुफ़, तेरे शाइस्ता अंदाज़-ओ-फ़न-ओ-हुनर.

आज का वल्वला रवाँ जवाँ, सहारा बने हर ग़ैरइख़्तियारी बुढ़ापे का,
शीरीं ज़िहनियत ही ज़रीआ हो, दिलों में बसी ख़फ़गी पर फ़तह पाने का.

(अख़लाक़-virtuous, १-fate, २-contented, ३-wounded, ४-identity, ५-enthusiasm, ६-unavoidable, ७-sweet, ८-displeasure)
*****

11 May, 2022

• सफ़र-ए-ज़ीस्त

आग़ोश में लिए मन्फ़ी से ही, वुजूद बनता है दरिया का,
शायद इसी कड़वाहट का तअस्सुर, हौसला देता है उभरने का.

ज़िहन में ज़हर भरा हो, तो लाज़िम है पैरवी झूठ की,
उतरती शक्ल दरअसल, कैफ़ियत कहती है मायूसी की.

ग़ैरइख़्तियारी है हर साँस की ख़ातिर, बढ़ना दर्द-ओ-उम्र का,
मरहम बनता है नफ़स, क़सूरवार भी ज़ख़्म-ए-मुस्तक़्बिल का.

बढ़ते क़दमों को खींचती, बेशुमार फैली भीड़ में,
मिल जाता हौसलाअफ़ज़ा, गाहबगाह रहगुज़र में.

सुकून का ही अक्स देखा पैहम१०, मंज़िल पाए हुए हर शख़्स में,
उनकी मुस्कानें बनी हमराह, रहनुमा भी सफ़र-ए-ज़ीस्त११ में.

कौन हुआ है आज़ाद, बंद-ए-दस्तूर-ए-दुनिया१२ से,
कौन उठा सका है चिलमन, सिर्र-ए-क़ैद-ए-हयात१३ से.

(सफ़र-ए-ज़ीस्त-journey of life, १-negativity, २-influence, ३-inevitable, ४-saga, ५-unavoidable, ६-breath, ७-wounds of future, ८-plenty, ९-occasionally, १०-always, ११-journey of life, १२-chains of rules of world, १३-mystery of captivity of life)
*****