क़दम चलते रहे
गुज़रगाह१, हर मोड़ पर पड़ाव को मेरा इंतिज़ार था,
सुकून पाने पर
एहसास हुआ, कि मैं तो मंज़िल की मुकम्मल२ तलाश था.
दरिया में लगाए
गोते ने सिखाए, अलिफ़-बे३ तह-ए-ज़िंदगी४ तक जाने के,
सीखी ग़ालिब की
तवाज़ो५, जब आग़ोश में खोया समंदर के.
सदाक़त-ए-शीशा-ए-दिल६
ने, पिघला दिया पत्थर की शदीदगी७ को,
पुख़्ता भी थे
मिज़ाज-ए-दिल८, ललकारा न क़ाबिलीयत-ए-संग९ को.
ख़ुददार मुहताज
नहीं होता, ख़ुदग़रज़१० दुनिया के रहम का,
हर कामयाब रूह
मगर, नतीजा होता है अनजान सजदे११ का.
(संग-ए-ज़र-milestone,
१-path, २-absolute, ३-alphabet, ४-secret of life, ५-respect, ६-truthfulness of heart
(made) of glass, ७-toughness, ८-attitude of heart, ९-capability of a rock, १०-selfish,
११-prayers)
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