19 May, 2022

• संग-ए-ज़र

क़दम चलते रहे गुज़रगाह, हर मोड़ पर पड़ाव को मेरा इंतिज़ार था,

सुकून पाने पर एहसास हुआ, कि मैं तो मंज़िल की मुकम्मल तलाश था.

दरिया में लगाए गोते ने सिखाए, अलिफ़-बे तह-ए-ज़िंदगी तक जाने के,
सीखी ग़ालिब की तवाज़ो, जब आग़ोश में खोया समंदर के.

सदाक़त-ए-शीशा-ए-दिल ने, पिघला दिया पत्थर की शदीदगी को,
पुख़्ता भी थे मिज़ाज-ए-दिल, ललकारा न क़ाबिलीयत-ए-संग को.

ख़ुददार मुहताज नहीं होता, ख़ुदग़रज़१० दुनिया के रहम का,
हर कामयाब रूह मगर, नतीजा होता है अनजान सजदे११ का.

(संग-ए-ज़र-milestone, १-path, २-absolute, ३-alphabet, ४-secret of life, ५-respect, ६-truthfulness of heart (made) of glass, ७-toughness, ८-attitude of heart, ९-capability of a rock, १०-selfish, ११-prayers)
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