जिस अज़ीज़ की ख़ातिर
तय की, कद-ओ-काविश१ भरी पेचीदा रहगुज़र२,
उसी क़रीब ने डाली
बेड़ियाँ, जिससे शादाब३ था हर पल का पस-ए-मंज़र४,
क़दमों में उलझे रिश्तों
के भँवर, धुँधली कर गए दिल-ओ-ज़िहन५ की नज़र,
मुआफ़ी-ओ-शुक्रगुज़ारी६
से परहेज़, ज़ीस्त७ को कर गया बेक़रार-ओ-बेज़र८.
(१-busy
life, २-path, ३-colourful, ४-background, ५-heart and mind, ६-apology and gratitude,
७-life, ८-restless and poor)
*****
No comments:
Post a Comment