ख़ता मेरा ही था
शायद, गुनाहगारों से चाहा करम१,
अपनों ने ही माँगा
हिसाब, ग़ैरों से क्यों करें शिकवा-ए-सितम२.
मेरी बेग़रज़ी और
मेरे तहम्मुल३, ग़लत ही साबित हुए मुसल्सल४,
थी मुझमें ख़ामियाँ
अनगिनत मगर, ज़माना भी कहाँ था मुकम्मल५.
बलंदी का क़द नहीं
होता, न होती है परवाज़६ की कोई हद,
मुक़ाम किसीको नहीं
होता मयस्सर७, फिर भी हौसला होता है अज़हद८.
हर सादगी सहती है
दग़ा, शराफ़त जूझती है तौहीन९ से,
ख़ामोशी-ए-सदाक़त१०
भी चुभे जहाँ, क्या अंजाम हो शाइस्ता११ जबाँ से.
(ख़ता-ओ-अंजाम-fault
and outcome, १-blessing, २-complaining of injustice, ३-intolerance,
४-constantly, ५-absolute, ६-flight, ७-achieve, ८-unbound, ९-insult, १०-silence
of truth, ११-decent)
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