हर कठिनाई ने बढ़ना
सिखाया, कार्यशीलता को कर चपल,
परिवर्तित भी किए
लक्ष्य में, मेरे सकल जतन विश्रुंखल।
आपत्ति की रम्य
श्रुंखला, उत्साहों के कवन सुनाती,
सुप्त चरणों को कर
जागृत फिर, उचित पथों पर क्रमण कराती।
कभी न टूटें धैर्य
व संयम, कोई गरज गर मुझपर बरसे,
शत्रु न कोई, सभी
मित्र हैं, कोई न आहत हों मुझसे।
यत्न हैं मेरे
पथिक व साथी, कृपा की न मुझको अभिलाषा,
प्रयास, कर्म और
परिश्रम से ही, मेरे भाग्य की है परिभाषा।
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