27 September, 2019

• अश्क

बहना ही अकसर मुक़द्दर है, कभी सैलाब बन, कहीं आब-शार,
मक़्सूद है नम करना, आज लरज़ाँ लब, कल सुर्ख़ रुख़्सार,
कभी क़ैद-ए-मिश़गाँ में महफ़ूज़, कभी आज़ाद बहकर भी बेज़ार,
इक़बाल-ए-अश्क चाहे जो हो, निशाँ मगर छोड़ जाते हर बार.

(१-water spring, २-trembling, ३-captivity of eyelids, ४-fate of tears)
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