चाक-ए-जिगर को
पानी है, नजात सैलाब-ए-ख़यालात से,
ज़िहन मगर चाहता
है, भीगना आब-शार-ए-तसव्वुर में,
आसमाँ तो ख़ुद
बेक़ाबू है, इल्तिजा-ए-रहम कहें तो किससे,
शमीम ने
बेनिक़ाब किए जज़्बात, जो लिपटे थे पुरानी चादर में.
(चाक-ए-जिगर-wounded
heart, आब-शार-ए-तसव्वुर-shower of imagination, इल्तिजा-ए-रहम-plead mercy, शमीम-fragrant breeze)
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1 comment:
बहुत खूब
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