मत्ला-ए-विसाल१
हमारा, आब-ए-चश्म२ से लिखा तुमने,
जाने कितने अशआर
बह गए, मेरे आब-ए-दीदा३ में,
तुम्हारी
ग़ज़ल-ए-ज़ीस्त४ में, फ़न पाया मुआशरे ने,
मेरा हुनर-ए-इश्क़
मगर, दर्ज हुआ मक़्ता-ए-हिज़्र५ में.
(१-first
couplet of Ghazal of union, २&३-tears, ४-song of life, ५-concluding
couplet of Ghazal of separation)
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