ख़ामोशी हो चुकी है
आदी, शोर-ए-सवालात-ए-गिर्द१ की,
उल्फ़त मगर सिहर
जाती है, महज़ सरगोशी-ए-ख़यालात२ से,
जुस्तजू-ओ-तसव्वुर३ में
तरसना, है फ़ित्रत ख़ामोश तनहाई की,
शोर-ए-तख़्लिया४ से
परीशाँ मगर, मुतअस़्स़िर५ भी उल्फ़त उसीसे.
(१-surrounding
noise of queries, २-whisper of thoughts, ३-search & imagination, ४-noise of
solitude, ५-inspired)
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