04 August, 2019

‘गीली हथेली’


     शालेय जीवन से इन्टर्नशिप पूर्ण होने तक कई मित्र हुए, किंतु इन्टर्नशिप के पश्चात मित्रों से भेंट कम ही होती थी। एक विचित्र सा ख़ालीपन महसूस होने लगा। पत्र भेजता, तो उनमेंसे कुछ ही जवाब लिखते। धीरे-धीरे सारे मित्र व्यस्त हो गए। दोनों ओर के पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक और व्यक्तिगत कारणों से संपर्क लगभग ख़त्म हो गया। मित्रों की बहुत याद आती। बीते वर्षों और वर्तमान की तमाम बातें किसीसे कहने का मन होता; किंतु दूरियाँ कुछ ऐसी बन गई थीं, कि कह न पाया। ई-मेल, फ़ेसबुक इत्यादि से तकनीकी रूप से तो सारे क़रीब आ गए थे; परंतु भावनात्मक दूरियाँ वैसीही रह गईं। एक दिन औपचारिकता की सारी बेड़ियाँ तोड़कर सोचा, कि पुराने दिनों की तरह ख़त ही लिख दूँ मित्र को। फिर क्या था; क़लम उठाया, तो सारा सैलाब ही काग़ज़ पर उतर आया।
     मित्र और मित्रता की परिभाषा एक ही रहेगी; फिर युग कृष्ण-सुदामा का हो, या थ्री इडियट्स का।

मेरी आँखों से बहे खारे पानी से,
तुम्हारी हथेली आज भी गीली है,
ज्वर में लिपटा था कभी जिससे,
तुम्हारे सीने की चादर क्या अभी भी गर्म है?
दर्द में कसकर पकड़ी थी मेरी कलाई तुमने,
उसपर सुर्ख़ निशाँ आज भी हैं,
दिलो-दिमाग़ पर खींचीं असंख्य रेखाएँ तुमने,
आज बेमिसाल चित्र बन चुकी हैं।

 Friendship Day
(Select lines from my Hindi poetry book)
*****

2 comments:

Sharad Somani said...

Lovely heart touching post Dr Rachalwar. In this era of FB and Twitter, we may have 5000 followers but not even 5 who we can share our heart with. A friendship built when the artificial barriers of status and expectations where non-existent, (school / college days) are the true relationships which we must treasure. Let us all be in touch with each other and keep that spirit of friendship alive. It is all the more necessary in the current times. Happy friendship day 😊

Jitendra Rachalwar (Rachal) said...

Thanks Sharad.
Happy Friendship Day.