23 August, 2019

• कहाँ हो तुम कृष्ण


     ‘कृष्ण’ से जुड़ी कहानियाँ तो बचपन से सुनता आया हूँ। कभी नटखट, कभी बहादुर, कहीं सलीम, तो कहीं रूठे; न जाने कितनी सूरतों में कृष्ण को पढ़ा और सुना। बचपन में सीधे मअने से ही देखता, इसलिए सारी कहानियाँ दिलकश लगती थीं। उम्र के साथ बढ़ती सोच ने यह एहसास कराया, कि हर कहानी महज़ तफ़्रीह नहीं, बल्कि दुनियवी लौस-ए-दुनिया को समझाता एक ख़ूबसूरत किताबचा है। तशद्दुद, तानाशाही और मन्फ़ी से आलूदा मौजूदा दौर में इन कहानियों के असल मअने समझना लाज़िमी है। कृष्ण ने भी तशद्दुद के तेवर अपनाए, मगर महज़ मन्फ़ी को हलाक करने की ख़ातिर। उन्होंने बेशक ज़नाँ को चिढ़ाया, मगर उस चिढ़ाने को अनचाही सूरत में तब्दील नहीं होने दिया। यही वजह थी, कि कृष्ण ने हज़ारों बेबस जनाँ की हिफ़ाज़त भी की। आज ज़नाँ तो क्या, हर मासूम, हर इन्सान ख़ौफ़ में जीने पर मजबूर है। वक़्त आ चुका है, कि हममें से हर शख़्स कृष्ण की ज़िहनियत के पहलुओं को ख़ुद में ढाले; वर्ना हमारा मुस्तक़्बिल यक़ीनन् मौजूदा हाल से भी तारीक होगा।

तुम्हें महज़ पुकार कर सँभले थे, परख़चे मज़्‌रूह इस्मत के,
तुम्हारे बस तसव्वुर से ही, धीरज रहे थे पांचाली के,
आज पशेमाँ है इन्सानियत, ग़ालिब हैं तेवर ग़ैर-मुहज़्ज़ब के,
ख़ौफ़नाक मौजूदा हालात, मुन्हदिम१० हवासिल११ ज़नान के.

वहशी लगा ही रहे हैं ठहाके, आबरूरेज़ी१२ सरे आम कर,
न ज़न बेख़ौफ़ रही न बचपन, न ज़र१३ महफ़ूज़ न ज़ेवर,
क़ादिर-ए-मुतलक़१४ कैसे मानें तुम्हें, ख़ामोश हो बावजूद सब जानकर,
क्या वाक़िई खो गए हो कृष्ण, या क़स्दन्१५ बैठे हो छिपकर.

■ जन्माष्टमी
(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)

(१-entertainment, २-worldly traps of illusion world, ३-violence, ४-negativity, ५-nature, ६-dark, ७-honour, ८-imagination, ९-uncouth, १०-shattered, ११-courage, १२-disgrace, १३-wealth, १४-most powerful, १५-purposely)
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