23 January, 2020

• ख़ता

ज़माने भर के आब-ए-हराम का, पैहम सुना है शिकवा हुस्न से,
निशाँ-ए-हुस्न होते आए हैं रुसवा, दाइमन् ज़ालिम ज़माने से,
क़ुसूर आब-ए-इशरत का नहीं, उल्फ़त पशेमाँ मुद्दत से जिससे,
ख़ता ज़िहनियत का है, जो मुसल्सल मुतअस़्स़िर कैफ़ से.

(१&५-liquor, २&७-repeatedly, ३-defame, ४-consistently, ६-ashamed, ८-driven)
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