ख़राज-ए-अक़ीदत१ चंद
लमहात का, उफ़ वह सजी सँवरी गोई२,
बेरंग तंज़ीम३ सुर्ख़ियाँ बटोरने,
दौड़ी-दौड़ी चली आई,
तस्वीर पर चढ़े
फूलों को कुचल, अंजुमन४ भी घर लौट गई,
यतीम५ साँसों
को आज भी तवक़्क़ुअ६, इंतिज़ार में जिनकी उम्र बीत गई.
■ Martyrs’ Day
(Select
lines from my Hindi-Urdu poetry book)
(१-tribute, २-speech, ३-organisation, ४-assembly, ५-orphan, ६-hope)
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Related link: (English poem) https://jsrachalwar.blogspot.in/2017/01/29-martyrs-day.html
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