■ यौम-ए-वफ़ात८
(ख़राज-ए-अक़ीदत९)
(१-desire of wealth, २-titles & crown, ३-honour of language, ४-extent of talent, ५-satisfied, ६-meaning of words, ७-an evening assembly, ८-death anniversary, ९-tribute)
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समाज में बंधनों के साथ जीना और बढ़ना होता है। किसने, कब और क्यों यह बंधन डाले, यह कोई नहीं जानता। चाहे प्रेम की हो, द्वेष या फिर नाराज़गी की; स्त्रियों को इन भावनाओं को व्यक्त करने के बंधनों में तनिक शिथिलता है; किंतु पुरुषों को किसी स्त्री के प्रति प्रेम तो दूर, आस्था जताने की भी स्वायत्तता बड़ी कंजूसी से मिलती है।
जिस व्याकुलता का प्रेमी और प्रेमिका को अब तक केवल एहसास था, उसे शब्दों में कहना अब अनिवार्य था; किंतु पहल कौन करे? शर्मसार होती प्रेमिका को झिझक ने बेबस कर दिया था। अंततः प्रेमी ने अभिव्यक्ति के सारे बंधनों को तोड़ प्रेमिका से ‘कारण’ कह ही डाला। जो अब तक व्याकुलता के आवरण से ढँके थे, उन समर्पित भावों को सुन प्रेमिका सराबोर हो गई।
प्राची का गुलाल थी या, अस्त की उद्विग्नता तुम,
■ Valentine’s Day