Jitendra Rachalwar’s Blog
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04 November, 2022
• बिरहन
उमड़ उमड़ कर बरसत नैना, करते मिलन घड़ी का सुमिरन,
बदरा घेरत चंदा बिजुरी, बह बह कर थक सूखे असुवन,
हृदय हो कंपित सोच अकल्पित, बढ़ती जावे बैरी ठिठुरन,
मुरझावे मन कर चिंता बहु, धीरज खोवे असहाय बिरहन।
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