मुजस्सम१
हो जाती है उल्फ़त, तख़्लिया की झुकी पलकों में,
ग़ैरइख़्तियारी हो
जाता है दमकना चश्म-ए-शब२ का,
उल्फ़त तो बस ही
जाती है नशेमन-ए-दीदा३ में,
इश्क़ मुहताज नहीं होता
मुलाक़ात-ओ-रू-ब-रू४ का.
(१-actual,
२-moon/eyes of the night, ३-nest of the eyes, ४-interaction and face to face)
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