13 August, 2017

• पार्थिव


     सनातन जीवनपद्धति में श्राद्ध विधि का विशेष महत्त्व है। चावल के पिंड को जब तक कौआ चोंच से स्पर्श नहीं करता, तब तक मृत व्यक्ति की उसके जीवित क्षण में कोई इच्छा अपूर्ण रही होगी ऐसा माना जाता है। श्राद्ध के दौरान चढ़ाया भोग पितरों तक पहुँचता है ऐसी भी धारणा है। मृतक के परिजनों को यह कहकर सांत्वना दी जाती है, कि मृत व्यक्ति उनके आसपास ही अदृश्य रूप में वास करते हैं; और उनकी स्मृति की ऊर्जा से हौसला देते हैं। बचपन में सोचता था, कि क्या वाक़िई ऐसा होता होगा? विज्ञान के अद्भुत आविष्कारों ने यह भी संभव किया है। अब हमारे प्रियजन मृत्यु के पश्चात भी हमारे आसपास बदले हुए रूप में ही, किंतु जीवित रह सकते हैं। आज आधुनिक, अनूठी और हैरत-अंगेज़ तकनीकों से इन्सानी कार्निया, गुर्दे, फेफड़े, यकृत तथा स्वादुपिंड का सफल प्रत्यारोपण सहज संभव है। भारत में आज अंगदान की प्रवृत्ति प्राथमिक अवस्था में है। समाज के कुछ ही स्तर तक इसके प्रति जागरूकता है।
     मेरे पिता ने कई वर्षों पूर्व मेरे युवावस्था में पदार्पण करते ही नेत्रदान के संकल्प पत्र पर उनके साथ मुझसे भी हस्ताक्षर करवाए थे। उसी प्रेरणा से चंद वर्षों पूर्व मैंने अंगदान का भी संकल्प किया। जिन बेहतरीन कार्यों को मैं मेरे जीवित क्षणों में न कर पाऊँ; हो सकता है और मंशा भी यही है, कि मेरे पश्चात मेरे अंग पाकर कोई अन्य व्यक्ति कर दे। आशा है, कि अंगदान एक संस्कृति बन हमें अपना जीवन सार्थक करने की प्रेरणा दे।

श्वास मेरे पा बने फिर, विश्व-शांति दूत कोई,
धन्य हों फिर आत्म मेरे, देख मानवता यों छाई।


■ Organ Donation Day
(Select lines from my Hindi poetry book)
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