09 March, 2021

• उद्विग्न

अस्त छिड़कता अनगिनत, स्मृतियाँ जीवनपटल पर,
घनी यादों को नहीं चैन, विरही मन को सताकर,
रातरानी की उत्कट गंध भी, मूक पीड़ा से बेअसर,
सराबोर हुई क्षमा अमृत से, पूर्व की प्रीत पराजित मगर।
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