मैंने ही तहरीर
किया है तुम्हारा बदहाल१ मुक़द्दर२,
मुझसे सवाल करने
की जुर्रत३ हरगिज़ न करना.
मेरी अय्यार४
अदब से वाक़िफ़ न हो, इतने तो तुम ग़ाफ़िल५ नहीं,
फिर भी तुम उलझन
में हो, यही एक कमाल है.
ग़ैरमुतवक़्क़िअ६
नहीं शदीद७ राहों पर अपनों का मुँह मोड़ना,
क़यामत८
में जो बेलौस९ साथ दे, ऐसी मिसाल नायाब है.
मेरा गाँव कल भी
हिस्सो में ही फैला था, बँटे तो आज सब के दिल हैं,
बच्चे तक नहीं
पूछते वजह-ए-नफ़रत, आज के दहशतज़दा१० दौर में.
(दौर-ए-दहशत-era
of terror, १-bad state, २-fate, ३-dare, ४-cunning, ५-unaware, ६-unexpected, ७-difficult,
८-doom, ९-unselfish, १०-terrifying)
*****
No comments:
Post a Comment