सज्जनों कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी जय-पराजय में,
मैं जीवन ही हार जाऊँ, तुम्हारी प्रतिष्ठा की लड़ाई में,
रक्त चाहे जिसका बहे, दूषित तो भूमि ही होगी अंत में,
कैसे श्वास ले सकोगे, कंकालों की भय-सभा में।
अब तो जागो सज्जनों, अभी भी मुझमें जीवन शेष हैं,
मेरी मृत्यु के पश्चात तो, तुम्हारे बस अवशेष ही हैं,
आनंद लो, सम्मान भी करो, तुम मुझसे, मेरे कण तुमसे हैं,
आवाहन करो मुरली के, उसके स्वर अब उदास हो चले हैं।
(Select lines from my Hindi poetry book)
■ Earth Day
■ World Environment Day
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