23 April, 2020

• किताब

    कपड़ों की ख़रीदारी पूरी कर सदानंद और कुमार किताबों की एक बड़ी दुकान पहुँचे। कुमार को किसी ख़ास इम्तिहान की पढ़ाई की ख़ातिर जो किताबें चाहिए थीं, उनमें से सिवा एक के सारी उसी दुकान में मिल गईं। दुकान-मालिक ने कहा, कि वह शायद ही कहीं मिल पाए। ठीक है, फ़िलहाल इन्हीं को पढ़ो, बची हुई बाद में ढूँढ़ लेंगे। सदानंद ने कुमार का हौसला बढ़ाते हुए कहा। दोनों दुकान के बाहर लौटे ही थे, कि यकायक सदानंद को कुछ याद आया। उसने उलटे रुख़ की ओर कार मोड़ी, और एक घने पेड़ की छाँव में फ़ुटपाथ पर जमी किताब की एक छोटीसी दुकान के सामने रोकी। पेपर फ़्री ऑफ़िसऔर इंटरनेट के दौर में औरों की तरह सदानंद का भी किताबें ख़रीदना और पढ़ना न के बराबर हो गया था। कई सालों बाद वह यहाँ लौटा था। जब तक कुमार किताबें खोजता, सदानंद दुकान-मालिक से बात-चीत करने लगा। गुज़ारा हो जाता है इतने में? सदानंद ने पूछा। दुकानदार बोला, बस, जैसे-तैसे चल जाता है। ऊँचे ढेरों में किताबों को खोजना कुमार के लिए मुश्किल होता देख सदानंद मदद के लिए बढ़ा। बड़ी कोशिशों बाद कुमार को तो किताब न मिल पाई; मगर सदानंद को कई दिनों से जिसकी तलाश थी, उस मज़्मून से मिलती-जुलती किताब मिल गई। क्या क़ीमत? सदानंद ने ख़ुश होकर पूछा।
    बरसों पहले जब सदानंद यहाँ आया करता, तब बोली हुई क़ीमत से आधी में ख़रीदने में फ़ख़्र महसूस करता था; मगर आज तक़ाज़ा-ए-उम्र ने उसे मोल-तोल की इजाज़त नहीं दी। उसने ख़ुश होकर दुकानदार को मुँह-बोली रक़म अदा की। एक मुद्दत बाद सदानंद ने कोई पुरानी किताब ख़रीदी थी।

सादा कवर में महफ़ूज़ किताब, सहारा थी भीड़ के तनहा पलों में,

सहलाता था अलफ़ाज़ का तरन्नुम, मुआशरा के शोर-ओ-गुल में,
कभी मुसकुराहट, कहीं ठहाके, दफ़अतन् नमी भी आई पलकों में,
जाने कितनों के मुख़्तलिफ़ जज़्बात, आज भी दर्ज हैं पुराने पन्नों में.

■ World Book Day
(Select lines from my Hindi-Urdu poetry book)

(१-subject, २-maturity by age, ३-safe, ४-words, ५-song, ६-society, ७-sudden, ८-various)
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22 April, 2020

• पृथ्वी

सज्जनों कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी जय-पराजय में,
मैं जीवन ही हार जाऊँ, तुम्हारी प्रतिष्ठा की लड़ाई में,
रक्त चाहे जिसका बहे, दूषित तो भूमि ही होगी अंत में,
कैसे श्वास ले सकोगे, कंकालों की भय-सभा में।

अब तो जागो सज्जनों, अभी भी मुझमें जीवन शेष हैं,
मेरी मृत्यु के पश्चात तो, तुम्हारे बस अवशेष ही हैं,
आनंद लो, सम्मान भी करो, तुम मुझसे, मेरे कण तुमसे हैं,
आवाहन करो मुरली के, उसके स्वर अब उदास हो चले हैं।

(Select lines from my Hindi poetry book)

■ Earth Day
■ World Environment Day
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05 April, 2020

• शब्द

कितने ही देखे रिश्ते, बिन शब्द के ही बनते,
शब्द के प्रलय में कुछ, टूटते अटूट रिश्ते,
धुन झूठ की कितनी ही गाओ, पराए अपने न बनते,
क्षमा एक मौन सच्ची, न्योछावर सर्वस्व होते।
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