05 May, 2023

• बेख़बर

मैं वाक़िफ़ हूँ तुम्हारे ग़म से मगर, वह मुशाबा नहीं मेरे रंज से,
न मुझे इल्म तुम्हारी कोफ़्त का, मेरे जख़्म से अनजान तुम भी,
हर लहू-ए-चाक-ए-जिगर बेख़बर रहता है दर्द-ए-ग़ैर से,
हर इश्क़ जुदा होता है, हर चोट का दर्द भी,

(१-similar, २-aware, ३-distress, ४-ooze of wounded heart, ५-love)
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