मैं वाक़िफ़ हूँ
तुम्हारे ग़म से मगर, वह मुशाबा१ नहीं मेरे रंज से,
न मुझे इल्म२
तुम्हारी कोफ़्त३ का, मेरे जख़्म से अनजान तुम भी,
हर
लहू-ए-चाक-ए-जिगर४ बेख़बर रहता है दर्द-ए-ग़ैर से,
हर इश्क़५
जुदा होता है, हर चोट का दर्द भी,
(१-similar,
२-aware, ३-distress, ४-ooze of wounded heart, ५-love)
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