22 January, 2024

• प्राण और प्रतिष्ठा

मंजुल ध्वनि कोमल घंटियों की,
प्रक्षोभ की कर्कशता में क्रमशः लुप्त होती,
उन्माद भरे विज्ञापन का कोलाहल,
घुट गई निःसीम भक्ति,
द्वेष में लिप्त विचारों के दलदल में,
मानवता मानो श्वास है गिनती,
मेरे हृदय से प्रस्थान कर चले थे मेरे प्राण,
कि मेरे पापों की भंगुर नींव उनकी प्रतिष्ठा ढहाती। १

उजड़े घर की बिखरी हुई मुंडेर,
माँ सजाती है नन्हे दीप से,
उसके प्राण आएँगे, आएँगे लेकर उजाले,
भोली मगर पूरी आशा है उसे,
सुना है छप्पन भोग लगा है,
मिट्टी की प्रतिष्ठा मगर दाने-दाने को तरसे,
निर्दयता और निर्लज्जता का शोर सुनाई दे रहा है,
भग्नावशेष पर रचाए आलय से। २

असंख्य आभूषणों से अलंकृत,
फिर भी क्यों निस्तेज है प्राण,
स्वार्थ के दावानल में,
भस्म हुए दायित्व के परिमाण,
धर्मांधता की मोहिनी से,
बधिर हुआ सत्य का परित्राण,
प्रतिष्ठा की सिसकियाँ दबाते,
अहंभाव के हृदयशून्य पाषाण। ३

आज भी अनगिनत प्राण शक्ति के,
विवश हैं झुलसने प्रताड़ना की ज्वाला में,
थक कर चूर, पराजित हो चुकी है प्रतिष्ठा,
स्वाभिमान और सम्मान की प्रतीक्षा में,
कुचले जा रहे हैं मूल्य, त्यक्त, लाचार, दुर्बल भी,
डोल रहा अहंकार, मिथ्या विजयोत्सव की ग्लानि में,
अशिष्ट हो रहे हैं श्रेष्ठ, आदर्श सह रहे हैं उपेक्षा,
नैतिकता हुई निश्चेष्ट, ऊँच-नीच के भेद में। ४

असंभव प्रतीत होती है सांप्रत,
क्रोध व ईर्ष्या से मुक्ति,
विचारधाराओं के द्वंद्व में,
भ्रष्ट हो चुकी है हमारी मति,
विषवृक्ष की जड़ें कुरेद चुकी हैं सद्विवेक,
विष-लता की बंदी बन चुकी है नीति,
प्राणों की प्रतिष्ठा लगी है दाँव पर,
प्रत्येक घड़ी अराजकता की आहट लाती। ५
*****
# Temple

5 comments:

Mohan Raut said...

बहूत खूब .... सटीक पंक्तीया 👍🏽🌹

Parag Ralegaonkar said...

Amazing command over language
Expression of thoughts in multiple ways is awesome
Looks simple while reading
But penning it down in simple words
Require Talent

Sandy said...

Superb writing

Dr.Sunita Narula said...

Beautiful lines are appropriate for today's seneiro.It tell the reality of our society.Well written, thank you so much for sharing.

Anonymous said...

Well expressed