नभ सजे मंगल शुभ
रंगों से, देश, विदेशों के भी,
सहस्ररश्मि के
आशीष, दिव्य हो संक्रमण, पावन भी,
उद्धार हो पतित का
अब, पातक का उच्चाटन भी,
तिल-तिल बढ़े
मधुरता, स्नेह, शांति, मानवता भी।
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1 comment:
आपकी कविता में छिपे भावों की आज समाज में बहुत आवश्यकता है क्योंकि इन्हीं भावों से ही सब मिलजुल कर और प्रेम से अपने देश को नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण कर सकते हैं ।आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों पर गर्व कर सकेगी। बहुत-बहुत धन्यवाद इस सुंदर सी कविता को प्रस्तुत करने के लिए।
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