26 October, 2016

'दीपावली'


अब न हो अन्याय की जय, न्याय का ही छत्र हो,
लहू-पिपासु पापियों का, रात्रि हर अब काल हो,
रात अँधियारी वह जाकर, उषा-काल अब रम्य हो,
आशा की किरणें नहाए, सुनहरा आकाश हो।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

(Select lines from my Hindi poetry book)
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2 comments:

Dr.Makarand V.Khubalkar said...

किरणों में नहाये की जगह किरणें नहायें यह नया है। वाह।!

Jitendra Rachalwar (Rachal) said...

👍 @ makarandji