दोनों तरफ़ के बेबस हालात देख सोचा, कि शख़्स और
वजह की गुफ़्तगू लाज़िम है। इत्तिफ़ाक़न् एक रोज़ उनकी रू-ब-रू हो ही गई।
शख़्स ने वजह को देखते ही कहा-
ढूँढ़ ही लेता है मुझे बड़ी आसानी से,
दर्द वाक़िफ़ हो गया है मेरे हर ठिकाने से.
वजह ने कहा-
माना, कि हमारी बेरुख़ी में बहुत शिद्दत थी,
ख़फ़गी बयाँ करते तो गुमराह न होते.
शख़्स ने कहा-
कैसे उम्मीद रखते दरारों में झाँकने की,
खुला दरवाज़ा भी आपने किया अनदेखा.
वजह ने कहा-
चुप्पी हमारी क़ाबिलीयत सी बन गई थी,
ख़ामोशी का हुनर आप ही से सीखा था.
शख़्स ने कहा-
हमें बदल दिया आपने आपके हुनर से,
अब तो अक्स भी ग़ैर लगता है.
वजह ने कहा-
पुराने कभी बदले ही नहीं,
वरना इश्क़ भी नई शिद्दत से करते.
वरना इश्क़ भी नई शिद्दत से करते.
शख़्स ने कहा-
हमने तराइक़ बदले आपके अंदाज़-ए-बयाँ के मुताबिक़,
ठोकरें खाईं हमने मगर, नाज़ आपको अंदाज़-ए-बेरुख़ी
का था.
वजह ने कहा-
हमारी बेरुख़ी से भी ज़्यादा आपके अंदाज़ बेदर्द
थे,
निशाँ देखकर भी पूछा, इंतिहा-ए-तक्लीफ़ क्यों है.
शख़्स ने कहा-
मिल्कियत समझ बैठे आपको, यही तक्लीफ़ थी हमारी,
ख़ुद लुटकर आपकी जफ़ा जो कमाई थी हमने.
वजह ने कहा-
ग़म यही है, कि हमपर जफ़ा का बस था,
तबाही रोक न सके दुतर्फ़ा, क़फ़स बड़ा बेरहम था.
एक लंबी ख़ामोशी के बाद शख़्स और वजह ने एक दूसरे
से ख़ामोशी से ही विदा ली, मगर विदा लेते वक़्त दोनों के दिलों में सुकून था। शायद इसलिए, कि-
माना, कि हसीन यादें रोशन करती हैं ज़िंदगी,
सूखे पत्तों की सरसराहट भी नायाब नग़्मात सुनाती
है.
(वाक़िफ़-aware, बेरुख़ी-ignorance, शिद्दत-intensity, ख़फ़गी-resentment, क़ाबिलीयत-ability, अक्स-reflection, ग़ैर-unfamiliar, अंदाज़-ए-बयाँ-way
of submission, अंदाज़-ए-बेरुख़ी-way
of ignorance, बेदर्द-rude, इंतिहा-ए-तक्लीफ़-limit of
sorrow, मिल्कियत-earning, जफ़ा-extreme
rudeness, नायाब-unique)
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