22 October, 2016

'मरज़'


     उस शख़्स की ‘ज़िंदा’दिली देख उसपर फ़ख़्र हुआ। सोचा, कि उसके रंगे हुए दिल की तस्वीर से वजह की रू-ब-रू कराऊँ; लेकिन मुलाक़ात हुई तो जाना, कि जिसे किसीके दर्द की वजह बनने में कभी ख़ुशी महसूस हुई थी, वह ख़ुद ही आज मायूस है। मैंने वजह से पूछा, “बात क्या है?” वजह ने कहा-
यह ग़म नहीं, कि हम कभी न बन सके उनके,
वह बने ही हैं हमारे अबतक, यही बेरहम मरज़ है.

(ग़म-grief, बेरहम-ruthless, मरज़-ailment)
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