जुदाई यक़ीनन् रंजीदगी देती है। मगर इसे सहने वालों
को इस दर्द की अजीब चाहत होती है। उँगली में काँटा चुभ जाए, तब भी दर्द कई दिनों तक
बरक़रार रहता है। अरसे तक जुदाई सहने वालों को दर्द बरदाश्त करने का हुनर जाने कहाँ
से हासिल होता है। अकसर ख़ामोश रहकर सहने वाले ऐसे लोगों में, कुछ सरे आम बयाँ करने
वाले भी मिल जाते हैं। ऐसेही एक शख़्स ने दर्द न छिपाने की वजह कुछ यों कही-
न ढँको यूँ तपिश को,
सेंक भी तो लेते हैं नफ़स,
फफोले न छिपाना, उन्हें
देख ही कोई खोल दे क़फ़स,
शोले दिखाने में क्यों
झिझक, शायद रोशन करेंगे तमस्,
बनकर ख़ाक उड़ना आसाँ
कहाँ, कह दो उन्हें नहीं हम बेबस.
(तपिश-distress, नफ़स-breath, क़फ़स-cage, तमस्-darkness)
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