19 October, 2016

'साथ'

     जिसने दर्द न छिपाने की वजह कही थी, उस शख़्स से कल दोबारा मुलाक़ात हुई। उसने ख़ुद को दर्द से पहले जितनाही बेख़बर रखा था। जब इश्क़ के खोने का उसे ख़ास अफ़सोस न होने की वजह जानना चाही, तो जुदाई को दिल से न लगाने की वजह उसने कुछ यूँ कही-
मुहब्बत देती है साथ फ़ना होने तक,
यादें लिपटती हैं रूह के बस आख़िरी आह तक,
कौन देता है साथ यहाँ, कितना, कहाँ तक,
देखा है कभी साँसों को दफ़न होते अब तक?

(फ़ना-destroyed, रूह-soul, आह-sigh, दफ़न-bury)
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