मूक हो गए निर्धनता
के रुदन और सिसकियाँ,
सत्ता और सामर्थ्य
के लज्जाहीन कोलाहल में,
समाज अनभिज्ञ तृष्णा
व क्षुधा की छटपटाहट से,
जो अंधा हुआ विज्ञापन
की चटकीली जगमगाहट में,
पुनः खो गया अस्तित्व,
चौखट पर खड़ी याचना का,
मासूमियत के अवशेषों
से निर्मित उन्मादभवन में,
मानवता हुई लज्जित,
संवेदना हुई शून्य,
निर्लज्जता हुई निर्बंध,
बेगानी शादी में। १
दहशत से पीड़ित अधमरे
लोकतंत्र को,
पुनः एक बार रौंदा
और कुचला गया,
बहुमूल्य लोकमत जड़ा
उधार का सिंहासन,
पुनः कौड़ियों के दाम
नीलाम हो गया,
स्वघोषित नृप ने स्वयम्
समेत,
सार्वभौम का भी समझौता
कर दिया,
अनिश्चितता के बवंडर
में हचकोले खाता प्रजातंत्र,
अराजकता की भयावह आहट
ले आया। २
क़दमों तले पिस गया
अनाज, दमकते महल में,
किंतु जठर क्षुधित
ही रहा, कुपोषित शिशु का,
थालियाँ सज गईं, स्निग्ध,
रसीली, मीठी,
आज भी वंचित ही रहा,
भूखा उदर अनाथ का,
छीने हुए पैबंद ओढ़कर,
डोल रहा मदमत्त लुटेरा,
असहाय नग्नता ओढ़ती,
वस्त्र घृणा व उपहास का,
मृत है संवेदना, बधिर
हैं भावनाएँ,
कर रही हैं बीभत्स
प्रदर्शन, उन्माद व अहंकार का। ३
याचना को स्वयम् करनी
होगी तृष्णा की शांति,
धधकाकर क्रोधाग्नि
समाज के अंतर का,
लाचार को तपना होगा
दावानल में,
करने धारण तेज, सामर्थ्य
क्रांतिसूर्य का,
प्रजा को अब करना ही
होगा शंखनाद,
करने उत्पाटन उन्मत्त
नृप की निरंकुश सत्ता का,
उखाड़ना होगा कलंकित
सिंहासन अभिमानी,
देखने उदय न्याय, मानवता
व लोकतंत्र का। ४
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# Wedding, Poverty, Hunger, Crony capitalism
1 comment:
Very soft and decent description of ruthless world of politics
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