04 November, 2022

• बिरहन

उमड़ उमड़ कर बरसत नैना, करते मिलन घड़ी का सुमिरन,
बदरा घेरत चंदा बिजुरी, बह बह कर थक सूखे असुवन,
हृदय हो कंपित सोच अकल्पित, बढ़ती जावे बैरी ठिठुरन,
मुरझावे मन कर चिंता बहु, धीरज खोवे असहाय बिरहन।
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2 comments:

RaKo said...

Too Good Do
👌

Parag Ralegaonkar said...

बेबस लाचार और असहाय की पिडा
समझ कर
मन को होने वाली वेदना
सही वर्णन